श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है नवीन आलेख की शृंखला – “ परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख ☆ परदेश – भाग – 23 – चुनाव प्रचार ☆ श्री राकेश कुमार ☆
साठ के दशक में बैलों की जोड़ी और दीपक निशान युक्त बैज, सेफ्टी पिन के साथ कमीज़ में टांकते हुए हमारे देश के चुनाव प्रचार की यादें आज भी स्मृति में हैं।
आजकल तो सोशल मीडिया का समय है, इसलिए ट्विटर, फेस बुक, व्हाट्स ऐप जैसे प्रचार साधन जोरों पर हैं। समाचार पत्र, पेम्प्लेट, बैनर, होर्डिंग, भवनों की दीवारें पोस्टर और पेंटर की कूची से रंग भरना अभी भी जारी हैं।
यहां विदेश में दो फुट चौड़ा और दो फुट लंबा एक्रेलिक शीट पर लिख कर सड़क के किनारे पर खड़ा कर देते हैं। यातायात या जन जीवन पर कोई रुकावट तक नहीं होती है। हमारे देश में तो नामांकन भरने, चुनाव परिणाम सब के अलग-अलग लंबे जलूस के रूप में जाते हैं।
प्रत्याशी स्वयं भी घर-घर जाकर और सभा के माध्यम से अपना परिचय देने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। समय, धन, बाहुबल का सहारा चुनाव की जीत में बैसाखी का कार्य करते हैं। इन सब से लोगों को भी अनेक परेशानियां होना स्वाभाविक है।
विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र का खिताब होने पर भी हमारे चुनाव प्रचार / व्यवस्था में ढेरों कमियां हैं। सुधार अत्यंत मंद गति से हो रहे हैं, शायद अंग्रेजी कहावत “Slow and steady wins the race.” के सिद्धांत को मानते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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