डॉ ज्योत्सना सिंह राजावत
( आज प्रस्तुत है डॉ. ज्योत्सना सिंह रजावत जी का विशेष समसामयिक आलेख “बदला घर का माहौल”. यह सत्य है कि जो हम नहीं कर पाते वह समय कर देता है या सिखा देता है। डॉ ज्योत्सना जी ने इस तथ्य को बेहद सहज तरीके से प्रस्तुत किया है। इसके लिए उनके लेखनी को सदर नमन। )
☆ बदला घर का माहौल ☆
हमारे धर्म ग्रन्थों में ‘जीवेत शरद: शतम् …’ कहकर ईश्वर से सौ वर्ष आयु की कामना की गई है। व्यवस्थित दिनचर्या के साथ यम नियम आसन धैर्य और संयम द्वारा ही 100 वर्ष की गिनती तक पहुंचने की कोशिश की जा सकती है जरा से कष्ट से हिम्मत हार कर हम अपने अन्तिम पड़ाव पर कैसे पहुँच पायेंगे, सुख का चरम सुख, आनन्दायी सुखमय अन्तिम पड़ाव ही है। मनुष्य की वास्तविक शक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति है। यह शक्ति ही कर्म करने की प्रेरणा देती है आपसी सहयोग सद्भाव की भावना, मैत्रेयी भाव, नाकारात्मकता को कम कर देती है, भले ही दूरी हो पर वैचारिक तालमेल सदैव जीने की प्रेरणा देता है।संक्रमित सोच, हमेशा महासंकट उत्पन्न करती है, घर परिवार समाज और देश के लिए। कुछ लोग आज घरों में कैद है फिर भी वैश्विक महामारी की ऊटपटांग अफवाहें फैलाकर,लोगों को भ्रमित कर समस्याओं को जटिल कर रहे हैं, कुछ दूसरे प्रकार के लोग इस संकट की घड़ी में संकट को बढ़ावा दे रहे हैं यह मूर्खता पूर्ण आचरण कर जान लेवा खिलवाड़ कर आंकड़े बढ़ाकर सरकार के लिए मुसीबत बने हुए हैं। बीमारी और मौत के अट्टहास के मध्य मानवता के हजारो हाथ लोगों की दिन रात मदद कर रहे हैं…सर्वे भवन्तु सुखिनः बस यही कामना करते हैं।
जहां एक ओर लोग गांवों से शहरों की ओर आए थे आज शहरों से पलायन कर गांव की ओर जा रहे हैं अपनी फिर उसी मातृ भूमि पर जिसे बरसों पहले छोड़ गए थे यही बदला हुआ स्वरूप उनकी दिनचर्या में देखने को मिला । जो हमारी नयी पीढ़ी जिन संस्कारों से दूर हो गयी थी ,लाख कोशिशों के बाद भी हम उन्हें वह सब नहीं सिखा पा रहे थे वह हमें इस वक्त ने सिखाया ।हम वह सब बच्चों नहीं दे पा रहे थे जो हमें यह वक्त दे गया। घर का बना हुआ खाना ,पिज़्ज़ा बर्गर पावभाजी नूडल्स इन सब की जगह घर की दाल रोटी सब्जी चावल बच्चों को भाने लगे हैं। बुरे वक्त में लोगों का सहारा बनना, घर परिवार के साथ समय बिताना ,इन सबसे बढ़कर एक बात और रामायण, महाभारत आदि धर्म ग्रंथों को जानने की जिज्ञासा यह सब संस्कार मिले । रुपया, पैसा, दोस्ती यारी ही सब कुछ नहीं है परिवार और परिवार के सदस्य महत्वपूर्ण है आपका अपना स्वस्थ जीवन महत्वपूर्ण है। इसी पर एक छोटा संस्मरण सुना रही हूँ।
“बदला घर का माहौल” जहां घरों में बच्चे हैं उनके घरों में प्रायः इस तरह की घटनाएं होना आम है पर हमारे यहां चार बच्चे है सब बड़े हैं सबकी दिनचर्या और स्वभाव अलग-अलग है कोई मोबाइल में गेम खेलता है तो कोई लैपटॉप लिए बैठा है तो कोई दोस्तों के साथ बाहर मॉल जा रहा है। बेटे कॉलेज में बेटियाँ स्कूल में । मतलब हाथ पकड़ कर घर में नहीं बिठाया जा सकता है सिर्फ कह सकते है ,वो भी बड़े प्यार से, अब पहले जैसा समय नहीं है बच्चों को डाँट फटकार कर रोक लो । बस प्यार से उनके हमदर्द बनकर ही उन्हे समझाया जा सकता है…बेटा कुछ बाहर का उल्टा सीधा मत खाना, जल्दी घर आ जाना । गाड़ी धीरे चलाना । हाँ हाँ ठीक है माँ मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूँ। अपने हिसाब से आ जाऊँगा। अरे माँ आप भी न फालतू की टेन्सन करती हो अपनी पसंद का दोस्तों के साथ खा लूँगा। आप पैट्रोल के लिए पैसे दो अभी तो कुछ दिन पहले दिये थे अरे माँ आप भी न जल्दी दो अच्छा यह लो दो हजार अब अगले सप्ताह दूँगीं बस इतना ही कह सके, कि उसने हाँ की और चला गया ।पैसे की बढ़ती फिजूलखर्ची और खाने की टेबल की खिट खिट को आये दिन होना ही था। जिस दिन सब घर पर है उस दिन….शाम होते ही क्या बना रही हो मां मुझे यह नहीं खाना यह क्या बनाकर रख दिया आपने… मुझे पैसे दो बाहर से कुछ अपनी पसंद का ऑर्डर करना है । अरे मां अपने फिर दाल बना दी यह क्या तोरई उफ्फ यह तोरई तो मैं खाता नहीं हूं कद्दू मुझे शक्ल से पसंद नहीं है, लौकी देखकर चिढ़ आती है मुझे एक भी सब्जियां नहीं खानी है। प्लीज मुझे पैसे दो रेस्टोरेंट से अपनी पसंद का ऑर्डर कर देता हूँ।
क्यूँ बेटा घर पर ही आपके लिए कुछ अच्छा सा बना देती हूं । अरे मां आप भी ना , वह बाजार वाला स्वाद नहीं आता है फिर अगली शाम सुनो मां, आज हमें पिज़्ज़ा खाना है पैसे दो बहुत बार समझाने के बाद आखिरकार पैसे देने ही पड़ते हैं। बस इतना जरूर चेतावनी दे देते आज खा लो फिर दो दिन तक मत माँगना और सुनो अपनी बहन से भी पूछ लो वह क्या खाएगी उसके लिए भी मंगवा लो…. क्या है मां मैं उसके लिए नहीं मंगवा सकता अपना ऑर्डर वह खुद करें । बच्चे ने कहा अच्छा कहकर हमें भी अपनी सहमति देनी पड़ी और रुपये भी ।अगले दिन फिर नया मैन्यु…।यह सिलसिला लगातार बढ़ ही रहा था ।कभी कभार से सप्ताह, फिर सप्ताह से दैनिक चर्या में ,सम्मलित हो गया था। इसका दूसरा पहलू कहे तो हमें भी आराम था ज्यादा झंझट नहीं करने पड़ते थे बच्चों के लिए कुछ ज्यादा बनाना नहीं पड़ता था चलो बच्चे भी खुश मम्मी भी खुश। पर आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है बच्चे बिना नाक सिकोड़े ,मुँह बनाए प्रेम से सभी मिलकर एक साथ खाना खाते हैं और खाने से पहले बड़े प्रेम से पूछते माते आज आपने भोजन में क्या बनाया, चारों भाई बहन एक साथ खाना खाते ।
सुबह शाम दोनों नियम से रामायण देखते ,दादाजी और दादी जी के साथ प्रतिदिन चर्चाएं करते बैठते और न कोई मॉल जा रहा है न ही दोस्तों से मिल रहा है ना पार्टियां न पेट्रोल का खर्चा सब कुछ बदल गया है। संध्या आरती में सब साथ में आते कोई शंख बजाता तो कोई घंटी बजाकर भगवान की आरती करता । सच ही कहा गया है संसार एक चक्रीय परिवर्तन है यहाँ सब कुछ बदलता है। जो हम नहीं बदल सकते हैं वह समय बदल देता है।
डॉ ज्योत्स्ना सिंह राजावत
सहायक प्राध्यापक, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर मध्य प्रदेश
सी 111 गोविन्दपुरी ग्वालियर, मध्यप्रदेश
९४२५३३९११६,