श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव
☆ महालक्ष्मी पूजा विशेष – महालक्ष्मी व्रत – श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव ☆
(आज महालक्ष्मी पूजा पर विशेष आलेख)
महर्षि वेदव्यास जी ने हस्तिनापुर में माता कुंती तथा गांधारी को महालक्ष्मी व्रत कथा बताई थी जिससे सुख-संपत्ति, पुत्र-पोत्रादि व परिवार सुखी रहें । इसे गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत यह पूजन किया जाता है।
इस दिन स्नान करके 16 सूत के धागों का डोरा बनाएं, उसमें 16 गांठ लगाएं, हल्दी से पीला करें। प्रतिदिन 16 दूब व 16 गेहूं डोरे को चढ़ाएं। 16 दिनों से महालक्ष्मी पूजन चलता रहता है अतः 16 का महत्व है । आश्विन (क्वांर) कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर मिट्टी के हाथी पर श्री महालक्ष्मीजी की प्रतिमा स्थापित कर विधिपूर्वक पूजन करें। यह व्रत पितृ दिवसों के बीच पड़ता है , शायद पितरों के खोने के अवसाद को किंचित भुला कर लक्ष्मी जी का स्मरण करना इसका उद्देश्य हो ।
महर्षि ने कुंती व गांधारी से वास्तविक ऐरावत हाथी का पूजन करवाया था , इसलिए प्रतीक रूप में मिट्टी के हाथी पर महा लक्ष्मी स्थापित कर पूजन की परम्परा है । कुछ लोग पीतल के हाथी का भी पूजन करते हैं ।
चूंकि कुंती व गांधारी ने स्वर्ण आभूषणों से ऐरावत को सजाया था अतः बेसन के बने पीले आभूषण पकवानों से हाथी को सजाने की परम्परा बन गई है । बच्चों को यह गहने पकवान जो विशिष्ट आकार के पपड़ी नुमा कुरकुरे तले हुए होते हैं , बहुत आकर्षित करते हैं ।
© श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव
ए १, शिला कुंज, नयागांव, जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈