सुश्री रुचिता तुषार नीमा
☆ कविता ☆ मित्रता दिवस = मित्र – एक ऐसा रिश्ता जो सभी रिश्तों से बढ़कर… ☆ सुश्री रुचिता तुषार नीमा ☆
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युग युगांतर से मनुष्य के जीवन में मित्र, दोस्त, सखा का एक विशेष स्थान रहा है। प्रभु श्री राम की निषादराज और सुग्रीव से मित्रता हो या श्री कृष्ण की सुदामा, उद्धव, अर्जुन और द्रोपदी से। ये दोस्ती की वो खुबसूरत मिसाल है,जिनके उदाहरण आज भी दिए जाते हैं ।युग बदलते रहे, लेकिन इस रिश्ते की खूबसूरती हमेशा वैसे ही बरकरार रही। एक ऐसा रिश्ता जो खून के संबंधों से भी बढ़कर ,दिल के करीब रहा हमेशा। जिसमें कभी जात पात, ऊंच नीच, स्त्री पुरुष का भेद नहीं हुआ। बस मित्र, सदा मित्र ही रहा।जिससे मन की हर अच्छी बुरी बात निसंकोच पूर्ण विश्वास के साथ कही जा सके। जो आपको सही राह बताए, संबल प्रदान कर सके।एक ऐसा रिश्ता जो हर स्वार्थ, हर सीमा से परे रहा।
लेकिन आज के भौतिक युग में जब सभी रिश्ते व्यापारिक तौर पर एक दूसरे से जुड़े होते हैं। सच्ची मित्रता का सौंदर्य खतम होता जा रहा। सोशल प्लेटफार्म पर कहने को तो आपके हजारों मित्र मिल जाते हैं, लेकिन जो दिल से साथ निभाए, ऐसा शायद ही कोई होता हैं।
इसलिए आपके सच्चे मित्र, जो बचपन से आपके साथ है, हर परिस्थिति में जिन्होंने प्रत्यक्ष, या अप्रत्यक्ष आपको सहयोग दिया है, ऐसे मित्रों को सहेज कर रखें।
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
ऐसे ही मित्रों के नाम ये कुछ पंक्तियां;
मित्र शब्द है जाना पहचाना सा,
दिल के क़रीब कोई अपना सा,
जिससे नहीं हो कोई भी सम्बन्ध,
पर हो दिल के गहरे बंधन
तो वह है मित्र..
जो बिन कहे सब समझ जाएं
जिसे देख दर्द भी सिमट जाए,
जिसे देखकर ही आ जाये सुकून
और सब तनाव हो जाये गुम.
तो वह है मित्र ….
जब मुश्किलों से हो रहा हो सामना,
और लगे कि अब किसी को है थामना
उस वक्त जो सबसे पहले आए
बिन कहे जो हाथ बढ़ाये
तो वह है मित्र……
निःस्वार्थ, निश्छल, सब सीमाओं से पार
जैसे हो कृष्ण और सुदामा,
जहाँ बीच में न आए कोई भाषा,
न कोई उम्मीद, न कोई आशा
बस यही है मित्रता की परिभाषा
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© सुश्री रुचिता तुषार नीमा
इंदौर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈