हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ लिखना सीखें आप भी – कहानी लेखन महाविद्यालय ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका)

श्री विजय कुमार 

( सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक   श्री विजय कुमार जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। शुभ तारिका का 56 वर्ष का इतिहास रहा है। मैं स्वयं अपने सैन्य जीवन में 1972 से 1980 तक इस पत्रिका का सदस्य रहा हूँ। मेरी पीढ़ी के साहित्यकारों ने अवश्य ही कहानी लेखन महाविद्यालय, अम्बाला के विज्ञापन अपने समय में देखे होंगे और पुराने पोस्टकार्ड एवं अंक संजो रखे होंगे। इस महाविद्यालय ने प्रतिष्ठित लेखकों की एक पीढ़ी का मार्गदर्शन किया है जो साहित्य, पत्रकारिता, आकाशवाणी, दूरदर्शन  एवं फिल्मों में विभिन्न पदों पर सुशोभित है। एक  पेज  से तारिका के नाम से प्रारम्भ शुभ तारिका तक इस पत्रिका का अपना इतिहास रहा है। मैं इस संस्थान  एवं पत्रिका को इतने वर्षों के पश्चात भी विस्मृत नहीं कर पाया और अंततः श्री कमलेश भारतीय जी के सहयोग से खोज निकाला। यह आलेख संभवतः आपको विज्ञापन लगे किन्तु,ऐसा समर्पित संस्थान 56 वर्षों से सतत चल रहा है, यही उन समर्पित सदस्यों के परिश्रम का परिणाम है।

ई-अभिव्यक्ति की ओर स्व डॉ महाराज कृष्ण जैन जी को विनम्र श्रद्धांजलि । इस संस्थान को सतत जीवन देने के लिए सुश्री उर्मि कृष्ण जी को सादर नमन। संस्थान के इतिहास एवं वर्तमान जानकारी को हमारे पाठकों से साझा करने के लिए आदरणीय श्री विजय कुमार जी, सह संपादक ” शुभ तारिका” का हार्दिक आभार।)

☆ लिखना सीखें आप भी – कहानी लेखन महाविद्यालय ☆

‘लिखना सीखें आप भी’ शीर्षक से शुभ तारिका तथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में आप एक विज्ञापन पढ़ते होंगे/हैं। दो कमरों में संचालित कहानी-लेखन महाविद्यालय, ‘कृष्णदीप’, ए-47, शास्त्री कालोनी, अम्बाला छावनी-133001 (हरियाणा) के विषय में आप भी जानिए –

मैं आज ‘डा. महाराज कृष्ण जैन’ द्वारा स्थापित किए गए ‘कहानी-लेखन महाविद्यालय’ के विषय में कुछ लिख रहा हूं। ‘कहानी-लेखन महाविद्यालय’ के संस्थापक डा. महाराज कृष्ण जैन ने कहानी लिखना सिखाने के लिए इस विद्यालय की शुरूआत 1964 में की थी। ‘लिखना सीखें आप भी’ कहानी लिखना सिखाने के लिए रचनात्मक पाठ्यक्रम है। डा.जैन के परिचय के बाद जानिए उनके द्वारा स्थापित विद्यालय को।

अम्बाला (हरियाणा) के एक छोटे से शहर अम्बाला छावनी में जन्म लेकर सारे देश और विदेश में लोकप्रिय हुए साहित्यकार, कहानीकार डा. महाराज कृष्ण जैन। उनका जन्म, पालन, शिक्षा, विवाह और जीवन एक कठिन किन्तु साहसिक संघर्ष का साक्षी है। पांच वर्ष की अल्पायु में यह बालक पोलियो का शिकार हुआ और जीवनपर्यन्त पहियाकुर्सी पर चला। यह शारीरिक अस्वस्थता उनके दृढ़ इरादों में कभी आड़े नहीं आई।

कई अनियमितताओं, अभावों और अव्यवस्थाओं के बीच डा. जैन ने अपनी पढ़ाई पूरी की। 1968 में पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। विषय था – ‘प्रेमचन्दोत्तर उपन्यासों में नारी की परिकल्पना का विकास’।

हिन्दी साहित्य के अतिरिक्त डा.जैन अंग्रेजी, विज्ञान, गणित, आयुर्वेद, ज्योतिष, वनस्पति शास्त्र, होम्योपैथी, फोटोग्राफी के अच्छे ज्ञाता थे। संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी, फ्रेंच भाषाएं उन्हें आती थीं। उनके पुस्तकालय में चुटकुलों से लेकर कालिदास, शेक्सपीयर, लाओत्से, कृष्णमूर्ति, ओशो, रविंद्र, शरत, प्रसाद, श्रीनरेश मेहता, निर्मल वर्मा, अज्ञेय सभी की पुस्तकें संकलित हैं। वे सबसे अधिक पैसा पुस्तकें खरीदने में ही खर्च करते थे। ‘विश्व की प्रसिद्ध कहानियां’ पुस्तक का अनुवाद और संपादन उन्होंने किया। दिलीप भाटिया द्वारा संकलित व उर्मि कृष्ण द्वारा संपादित ‘गुरु नमन’ (डा. महाराज कृष्ण जैन के लेख) पुस्तक भी प्रकाशित हुई है।

पर्यटन, प्रकृति, फूल-पौधे, वन और वनवासी जीवों से उन्हें खूब लगाव था। विश्व में पाये जाने वाले अधिकांश पेड़-पौधों और फूलों के नाम उन्हें ज्ञात थे। विश्व के रहस्यों को जानने में भी उनकी विशेष रुचि थी।

डा. जैन बौद्धिक व मानसिक रूप से अत्यन्त स्वस्थ और सजग थे। उनका मनोबल देखते ही बनता था। एक जगह कमलेश भारतीय लिखते हैं–‘ऐसा लगता था कि जैसे उनकी व्हील चेयर न होकर कोई पौराणिक ग्रंथों का रथ हो, जो उन्हें दूर दराज तक ले जाने में ही नहीं कल्पना की उड़ान भरने में भी सक्षम है।’

विष्णु प्रभाकर लिखते हैं– ‘उनसे मिलकर मैं निश्चित ही भाव-विह्नल हो उठता था। वे कहानी लेखकों का मार्गदर्शन ही नहीं करते थे बल्कि मानव जीवन के रहस्यों का आह्नान भी करते थे। सागर से गहरे, नदियों से मीठे, कवि मन, एक पारखी, एक कद्रदान–कितनी-कितनी उपमाएं मिली हुई हैं डा. जैन को। उर्मि कृष्ण कहानी-लेखन महाविद्यालय के माध्यम से डा. जैन से परिचित हुई थीं, उनकी विलक्षण सर्वोन्मुखी प्रतिभा से अभिभूत होकर वह डा. जैन के साथ प्रणय सूत्र में बंध गयीं।’

कहानी उपन्यास लेखन में विशेष रुचि रखने वाले डा.जैन ने 1964 में कहानी-लेखन महाविद्यालय की स्थापना की। रचनात्मक लेखन में पत्राचार द्वारा मार्गदर्शन देने वाला यह भारत का प्रथम संस्थान था।

डा. महाराज कृष्ण जैन और कहानी-लेखन महाविद्यालय का नाम लेखकों के बीच में एक चिरपरिचित नाम है जो आज भी चर्चा में रहता है। कितने ही लेखक जो कलम पकड़ कर कागज पर मन के भावों को उतारना चाहते थे, वे कहानी-लेखन महाविद्यालय से जुड़े और उनकी प्रतिभा पूर्ण रूप से विकसित होकर सामने आई।

देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों में डा. जैन ने कहानी को न केवल लिखा व लिखना सिखाया बल्कि बहुत करीब से जिया भी।

‘कहानी-लेखन महाविद्यालय’ रचनात्मक लेखन में पत्राचार द्वारा शिक्षण देने वाला संभवतः भारत का प्रथम संस्थान है। डा. महाराज कृष्ण जैन स्वयं ने लेखन करते हुए जिन कठिनाइयों का सामना किया उन्हीं कठिनाइयों में मार्गदर्शन देने के लिये इस पाठ्यक्रम की शुरूआत 1964 में पत्राचार माध्यम से की गई। कहानी-लेखन के अतिरिक्त पत्रकारिता का शिक्षण भी कुछ समय बाद इसमें आरंभ किया गया। जिस समय इस पत्राचार पाठ्यक्रम की शुरूआत हुई (1964) उस समय भारत में रचनात्मक लेखन में मार्गदर्शन की कोई अवधारणा नहीं थी। पत्राचार माध्यम से तो हमारे देश में कहीं कोई शिक्षण नहीं चल रहा था।

आज इस संस्थान द्वारा कहानी-कला के अतिरिक्त लेख और फीचर लेखन, पत्रकारिता और संपादन, पत्रिका- संचालन, पटकथा लेखन, प्रेक्टिकल इंग्लिश आदि कोर्स चलाये जा रहे हैं। इस समय एक उप कोर्स फीचर एजेंसी संचालन भी सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। भारत में ही नहीं, इसके सदस्य नेपाल, सऊदी अरब, मारीशस, इंग्लैंड, अमेरिका, जापान सभी जगह फैले हैं।

पत्राचार शिक्षा के लाभ
पत्राचार शिक्षा में आप घर बैठे अध्ययन कर सकते हैं। आपको किसी कालेज या विश्वविद्यालय में नहीं जाना पड़ता और न घर से दूर छात्रावास आदि में रहने की समस्या है।

हमारे विशाल देश में सभी स्थानों पर सभी विषयों की शिक्षा की व्यवस्था करना संभव नहीं है। पत्राचार-शिक्षा से देश के सुदूर और पिछड़े से पिछड़े स्थानों के व्यक्ति भी अपने इच्छित विषयों का अध्ययन कर सकते हैं।

पत्राचार अध्ययन आपकी सुविधा पर चलता है, कालेज की सुविधा पर नहीं। आप अपनी नौकरी या व्यवसाय में संलग्न रहते हुए भी कुछ घण्टे अध्ययन के लिए निकाल कर अपनी योग्यता बढ़ा सकते हैं।

सुविधाएं
सदस्यों को पहले प्रति पन्द्रह दिन बाद दो पाठ, इस प्रकार एक मास में चार पाठ भेजे जाते थे। (पाठों की संख्या कुछ पाठ्यक्रमों में कम और कुछ में अधिक हो सकती है।) डाक व्यवस्था में गड़बड़ी से बहुत सी डाक गुम होने के कारण आजकल दो बार में पूरे पाठ रजिस्ट्री डाक से भिजवाए जा रहे हैं।

पाठों के साथ सदस्यों के अध्ययन की जांच के लिए समय-समय पर कुछ अभ्यास-पत्र तथा प्रश्न-पत्र दिये जाते हैं। अभ्यास-पत्र सदस्य के अपने दोहराने के लिए होते हैं। प्रश्न-पत्रों के लिखित उत्तर संस्थान में भेजने होते हैं।

आप अपने खाली समय में पाठ पढ़ें। इसके उपरांत प्रश्न-पत्र के उत्तर लिखकर भेजने होते हैं। शिक्षक उसका निरीक्षण करने के बाद उस पर टिप्पणी और सुझाव देते हैं। संशोधित उत्तर-पुस्तिका तथा टिप्पणी आपको अगले पाठों के साथ भेज दी जाती है।

पाठ्यक्रम में कोई भी कठिनाई या समस्या आने पर आप संस्थान से सहायता और परामर्श ले सकते हैं।

सदस्य अपनी किसी भी कठिनाई के सम्बन्ध में संस्थान से निःसंकोच पत्र-व्यवहार कर सकते हैं। उनके सभी प्रश्नों व शंकाओं का समाधान किया जाता है।

एक पाठ्यक्रम की अवधि लगभग 6 मास होती है किन्तु यह विद्यार्थी की आवश्यकता के अनुसार घटाई-बढ़ाई जा सकती है। अवधि बढ़ाने का कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाता। पाठ्यक्रम पूर्ण होने पर प्रमाण-पत्र दिया जाता है।

पाठयक्रम पूर्ण होने के पश्चात् भी सदस्य पूर्ववत् हर प्रकार की सहायता, सहयोग एवं परामर्श प्राप्त कर सकते हैं। (इसके लिये कुछ सेवा शुल्क देना होता है।)

इन पाठों के अध्ययन और अभ्यास में प्रति सप्ताह केवल 3-4 घंटे का समय लगता है। अतः इससे आपकी पढ़ाई अथवा नौकरी में जरा भी बाधा न पड़ेगी। बल्कि आपकी पढ़ाई में ये पाठ्यक्रम सहायक ही सिद्ध होंगे।

कोर्स करने के लिए
सरकारी कर्मचारी या सैनिकों को पाठ्यक्रम करने के लिए सरकारी अनुमति की आवश्यकता नहीं है। अनेक सरकारी कर्मचारियों तथा सैनिकों ने ये कोर्स किये हैं/कर रहे हैं।

कहानी-लेखन महाविद्यालय एक प्राइवेट संस्थान है। यह पिछले 56 वर्षों से भारतभर में प्रसिद्ध है। अतः इसके प्रमाण पत्र की बहुत महत्ता व प्रतिष्ठा है। वैसे आज दुनिया में महत्त्व प्रमाण-पत्रों को नहीं, काम में कुशलता को दिया जाता है। संस्थान के कोर्स आपको विषय और क्षेत्र का पूरा ज्ञान व कुशलता देते हैं। इन पाठ्यक्रमों को करने के लिए आपके पास कोई भारी-भरकम डिग्री की अनिवार्यता नहीं है। आपका हिन्दी का ज्ञान अच्छा होना चाहिए। संस्थान के किसी भी कोर्स के लिए वर्ष में आप जब भी चाहें प्रवेश ले सकते हैं। इसके लिए आवेदन-पत्र तथा निर्धारित शुल्क आपको भेजना होता है। ये आते ही आपका कोर्स आरंभ कर दिया जाता है।

आवेदन-पत्र एवं शुल्क ‘शुभ तारिका, केनरा बैंक, अम्बाला छावनी, अकाउंट नं. 0200201001906,  IFSC Code CNRB0000200 के नाम से भेजना होता है, किसी व्यक्ति विशेष के नाम से नहीं। अधिक जानकारी के लिए मोबाइल नंबर 9813130512 संपर्क कर सकते हैं।

अन्य सुविधाएं
‘शुभ तारिका’ इस संस्थान का अनुवर्ती उपक्रम है। इस मासिक पत्रिका में साहित्यिक कृतियों के अतिरिक्त कई रोचक स्तम्भ भी चलाये जा रहे हैं। यह पत्रिका देश और विदेश में लोकप्रिय है। इससे कई प्रसिद्ध लेखकों के नाम जुड़े हुए हैं। इस पत्रिका में छपने के लिए विद्यालय के सदस्यों को प्राथमिकता दी जाती है।

कहानी-लेखन महाविद्यालय संस्थान वर्ष में एक बार देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लेखक मिलन शिविर, पत्रकारिता कार्यशाला का आयोजन करता है। इस आयोजन के पीछे सम्पूर्ण देश-विदेश में फैले अपने सदस्यों का मिलन, मार्गदर्शन तथा देश-विदेश की भाषा, संस्कृति का जुड़ाव और परिचय कराना होता है। ये शिविर सफलतापूर्वक चलाये जा चुके हैं। इसमें कहानी-लेखन महाविद्यालय के सदस्य, शुभ तारिका के पाठक और अन्य सभी देश-विदेशों के इच्छुक लेखक, साहित्यकार बन्धु बहुत उत्साह से भाग लेते हैं। आजकल ये शिविर शिलांग (मेघालय) में पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी, शिलांग के मानद सचिव डा.अकेलाभाइ (कहानी-लेखन महाविद्यालय के सदस्य) द्वारा हर वर्ष (2002, फिर 2008 से लगातार) आयोजित किये जा रहे हैं। इनके द्वारा डा. जैन की स्मृति में हर वर्ष लेखकों को ‘डा. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान’ दिये जा रहे हैं।
5 जून 2001 को डा. महाराज कृष्ण जैन का अचानक निधन हो गया। तब से उनकी पत्नी सुश्री उर्मि कृष्ण संस्थान का सारा कार्यभार देख रही हैं।

जब डा. जैन ने लेखन के कोर्स आरंभ किये तो बहुत से नामी लेखकों ने कहा कि क्या प्रशिक्षण से कोई लेखक बन सकता है? लेखन और प्रतिभा तो ईश्वरीय देन होती है।

यह सवाल शुरू से आज तक कई व्यक्ति करते आए हैं और करते ही रहते हैं। जब गायन, वादन, नृत्य, चिकित्सा और कई तरह के व्यावहारिक ज्ञान के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है तो लेखन के लिये क्यों नहीं? नये लेखक जिसके पास भाव, भाषा, शब्द तो होते हैं किन्तु वे उन्हें व्यक्त करने, उनकी सही प्रस्तुति देने में गड़बड़ा जाते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता जरूरी है, सहायता भी। आज के युग ने तो प्रमाणित कर दिया है कि जीवन के हर क्षेत्र में प्रशिक्षण की आवश्यकता है, मानसिक और शारीरिक दोनों क्षेत्रों में। शिक्षण द्वारा ही प्रगति, उन्नति संभव होती है। स्कूल, काॅलेज में 15 साल पढ़ लेने के बाद भी हर व्यक्ति को जीवन के क्षेत्र में उतरने के लिये किसी न किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता रहती ही है।

पटकथा लेखन को छोड़कर बाकी सभी पाठ्यक्रम डाॅ. महाराज कृष्ण जैन स्वयं ने लिखे हैं। इसमें उनकी धर्मपत्नी श्रीमती उर्मि कृष्ण ने उनकी लगातार सहायता की है। पटकथा लेखन का कोर्स फिल्म संस्थान के एक प्रसिद्ध व्यक्ति से सहायता लेकर तैयार किया गया था।

आज ऐसा कोई भी पत्र या पत्रिका नहीं है जहां पर कहानी-लेखन महाविद्यालय के सदस्य उच्च पद पर विराजमान न हों। बहुत से तो आकाशवाणी, टीवी, फिल्मों में भी कार्यरत हैं।

तो यदि आपकी लेखन में रुचि है और कुछ करना चाहते हैं तो आप निदेशक, कहानी-लेखन महाविद्यालय, ए-47, शास्त्री कालोनी, अम्बाला छावनी-133001 (हरियाणा) के पते पर 30 रुपये भेजकर विवरणी मंगा सकते हैं।

श्री विजय कुमार, सह-संपादक ‘शुभ तारिका’

संपर्क – 103-सी, अशोक नगर, अम्बाला छावनी-133001, मो.: 9813130512