श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. हमारा पूर्ण प्रयास है कि- आप उनकी रचनाएँ  प्रत्येक बुधवार  को आत्मसात कर सकें। आज प्रस्तुत है “विभिन्नता में समरसता -3”)

☆ आलेख ☆ विभिन्नता में समरसता -3 ☆

भारत और इसके निवासियों को ईसाइयत ने भी काफी प्रभावित किया। वर्तमान समय की पोशाकें, खानपान के तरीके, आधुनिक शिक्षा, चिकित्सा प्रणाली , तकनीकी ज्ञान और सबसे बढ़कर आधुनिक समाजशास्त्र के नियम, जो रंग, जाति, लिंग का भेदभाव किये बिना सबको जीने का समान अवसर देने के पक्षधर हैं, हमें पाश्च्यात संस्कृति से ही मिले हैं।

हमारे देश के अनेक मनीषियों ने समय समय पर इस सामासिक संस्कृति को आगे बढाने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। महान संत रामकृष्ण परमहंस ने तो ईश्वर एक है की अवधारणा की पुष्टि हेतु ईसाइयों के पादरी और मुस्लिम मौलवी का रूप धर लम्बे समय तक परमेश्वर की आराधना उन्ही की पद्धत्ति से की एवं ईश्वर की अनुभूति की। स्वामी विवेकानंद तो कहते थे कि हमारी जन्मभूमि का कल्याण तो इसमें है कि उसके दो धर्म, हिंदुत्व और इस्लाम, मिलकर एक हो जाएँ। वेदांती मस्तिष्क और इस्लामी शरीर के संयोग से जो धर्म खडा होगा, वही  भारत की आस्था है। हमारी सामासिक संस्कृति की सच्ची अनुभूति तो महात्मा गांधी को हुई। यंग इंडिया और हरिजन के विभिन्न अंको में लिखे अनेक लेखो व संपादकीय और हिन्द स्वराज नामक पुस्तक के माध्यम से गांधीजी ने हिन्दू मुस्लिम एकता, मिलीजुली संस्कृति,अंधाधुंध  पाश्चातीकरण के दुष्प्रभाव पर प्रकाश डाला है। हिंद्स्वराज में महात्मा गांधी लिखते हैं कि ” हिंदुस्तान में चाहे जिस धर्म के आदमी रह सकते हैं; उससे वह एक राष्ट्र मिटने वाला नहीं है। जो नए लोग उसमे दाखिल होते हैं, वे उसकी प्रजा को तोड़ नहीं सकते, वे उसकी प्रजा में घुल मिल जाते हैं। ऐसा हो तभी कोई मुल्क एक राष्ट्र माना जाएगा। ऐसे मुल्क में दूसरे लोगो का समावेश करने का गुण होना चाहिए. हिन्दुस्तान ऐसा था और आज भी है।” यंग इंडिया के एक अंक में उन्होंने लिखा कि “मेरा धर्म मुझे आदेश देता है कि मैं अपनी संस्कृति को सीखूँ, ग्रहण करूँ और उसके अनुसार चलूँ. किन्तु साथ ही वह मुझे दूसरों की संस्कृतियों का अनादर करने या उन्हें तुच्छ समझने से भी रोकता है। ” गांधीजी का मानना था कि हमारा देश विविध संस्कृतियों के समन्वय का पोषक है। इन सभी संस्कृतियों ने भारतीय जीवन को प्रभावित किया है हमारी संस्कृति की विशेषता है कि उसमे प्रत्येक संस्कृति का अपना उचित स्थान है।

हमारी सामासिक संस्कृति वस्तुतः विश्व की धरोहर है। यह सतरंगी है. इस संस्कृति में अनेक रंगों के फूल अपनी सुन्दरता लिए सदियों से महकते आये हैं। हमारी नदियाँ और पर्वत सभी भारत वासियों को एक ही दृष्टी से आकर्षित करते हैं। भारत एक भूमि का टुकडा मात्र नहीं है। यह अनेक संस्कृतियों का मिलन स्थल है इसलिए वह एक सम्पूर्ण राष्ट्र है। इसमें इतनी विविधताएं हैं कि कई विद्वान् इसे उपमहाद्वीप कहते हैं। हमारी सामासिक संस्कृति आरम्भ से ही सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया  का उद्घोष करती आ रही है।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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