(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।
ई-अभिव्यक्ति पर एक अभियान के तहत समय-समय पर “संदर्भ: एकता शक्ति” के अंतर्गत चुनिंदा रचनाएँ पाठकों से साझा करते रहते हैं। हमारा आग्रह है कि इस विषय पर अपनी सकारात्मक एवं सार्थक रचनाएँ प्रेषित करें। आज प्रस्तुत है श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव जी का भावप्रवण आलेख “मेरे प्यारे देश आर्यावर्त”। )
☆ सन्दर्भ: एकता शक्ति ☆ मेरे प्यारे देश आर्यावर्त ☆
मेरे प्यारे देश आर्यावर्त
तुम्हारी सोंधी मिट्टी मेरे सर माथे पर
यह खत तुम्हें बाघा बॉर्डर से लिख रहा हूं ।आज शाम मैंने यहां पर कड़क वर्दी में भारत और पाकिस्तान के सैनिकों का चुस्त अभ्यास देखा ।
भारत की आजादी के जश्न को जब मैं बाघा बॉर्डर पर मना रहा हूं तो सोचता हूं तुम्हारे विभाजन से मिली स्वतंत्रता से महात्मा गांधी और देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए अमर शहीदों का सपना कच्ची नींद में ही टूट गया लगता है।
कल मैंने एक फिल्म देखी थी ‘सरदार’। फिल्म में भी सीने पर विभाजन का पत्थर रखकर हजारों परिवारों का दोनों ओर से पलायन और बाघा बॉर्डर पार करती लाशों से लदी गाड़ीयां , देख पाना मेरे लिए बेहद पीड़ा जनक था । उफ कितना वीभत्स रहा होगा वह सब सच में।
मेरे प्यारे देश मेरी कामना है कभी पुनः आर्यावर्त की सीमा उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम फिर से एक हो, अखंड भारत बना तो यही बाघा बॉर्डर उस विलय के महा दृश्य का गवाह बन सकेगी।
आज का आतंक को प्रश्रय देता हमारा पड़ोसी संकुचित सांप्रदायिकता से ऊपर उठकर शहीदे आजम भगत सिंह जैसे सपूतों के सामाजिक समरसता के रास्ते पर भारत का अनुगामी बन सके । यदि पाकिस्तान मजहबी चश्में से ही देखना चाहे तो मैं उसे अशफाक उल्ला खान, बहादुर शाह जफर और गदर पार्टी के संस्थापकों में से एक भोपाल के बरकतुल्लाह की याद दिलाना चाहता हूं, इन महान शहीदों ने बंटवारे की कल्पना नहीं की थी।
भगत सिंह ने कहा था पूरी आजादी का मतलब अंग्रेजों को हटाकर हिंदुस्तानियों को कुर्सी पर बैठा देना भर नहीं है ।
उन्होंने आजाद भारत की परिकल्पना की थी जहां सत्ता सर्वहारा के पास होगी, यह संघर्ष अभी भी जारी है विशेष रूप से हमारे पड़ोसी देश में तो इसकी बड़ी जरूरत है
भारत में भी हमारी पीढ़ी को जवाबदारी मिली है कि हम सांप्रदायिकता के विष से राष्ट्र को मुक्त करें जातिवाद से ऊपर उठकर भाषाई तथा क्षेत्रीय विभिन्नताओं के बीच उस देश की रचना करें जहां भौगोलिक सीमाओं की विशालता के साथ हम सब की संस्कृति एक है संगीत की स्वर लहरियां हम सबको एक जैसा स्पंदित करती है हवा पानी जंगल वैचारिक और वैज्ञानिक संपदा हम सब को एक सूत्र में जोड़ते हैं । जब किसी अंतरराष्ट्रीय खेल स्पर्धा में हमारे किसी खिलाड़ी को पदक मिलता है तो जिस गर्व से हमारा सीना चौड़ा हो जाता है तिरंगे के प्रति सम्मान से जनगणमन के गान से हम सबको जो गर्व होता है , जब अंतरिक्ष को चीरता इसरो का कोई रॉकेट हमारी आंखों से नील गगन में ओझल होने लगता है तब हम में जो स्वाभिमान के भाव जाते हैं वह मेरी पूंजी है ।
भारत और पाकिस्तान की राजनीति में कितना भी बैरभाव हो पर निर्विवाद रुप से दोनों देशों की जनता भगत सिंह जैसे शहीदों के प्रति समान भाव से नतमस्तक है ।
दोनों देशों के सर्वहारा की समस्याएं समान ही है । मैं सोचता हूं कि यदि बर्लिन की दीवार गिर सकती है उत्तर और दक्षिण कोरिया पास पास आ सकते हैं तो अगली पीढ़ियों में शायद कभी वह दिन भी आ सकता है जब एक बार फिर से मेरे उसी आर्यावर्त का नया नक्शा सजीव हो सकेगा। मेरा जीवन तो इतना लंबा नहीं हो सकता कि मैं वह विहंगम दृश्य देख पाऊंगा पर ए मेरे देश, मेरी कामना है कि यदि मेरा पुनर्जन्म हो तो फिर फिर तेरी धरती ही मेरी मातृभूमि हो । मैं रहूं ना रहूं तुम अमर रहो । सदा रहोगे क्योंकि मेरे जैसा हर भारतवासी बेटा ही नहीं बेटियां भी हमारी आन बान शान के लिए अपनी जान पर खेलने को सदा तत्पर हैं। विश्व में तुम्हारी पताका लहराने में ही हमारी सफलता है । मुझे और हर भारतवासी को वह शक्ति मिले की हम स्वर्णिम अखंड भारत आर्यावर्त का, सर्वहारा को शक्तिशाली पद प्रतिष्ठित करने का विकास और एकता का स्वप्न यथार्थ में बदलने हेतु निरंतर सकारात्मक रचनात्मक कार्यों में सदैव सक्रिय बने रहे।
तुम्हारी माटी का मुरीद
विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈