हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ सन्तान सप्तमी की परिपाटी ☆ श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव

श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव

☆ आलेख – सन्तान सप्तमी की परिपाटी… – श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव ☆

संतान सप्तमी व्रत का यह व्रत पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को किया जाता है।  माताएँ शिव पार्वती का पूजन करके पुत्र प्राप्ति तथा उसके अभ्युदय का वरदान माँगती हैं। इस व्रत को ‘मुक्ताभरण’ भी कहते हैं।

अब जब लड़कियां लड़को की बराबरी से समाज मे हिस्सेदारी कर रही हैं , तो यह व्रत लड़का लड़की भेद से परे सन्तान के सुखी जीवन के लिए किया जाता है ।

चूंकि व्रत कथा में कहा गया है कि रानी ईश्वरी व उसकी सखी भूषणा में से रानी यह व्रत करना विस्मृत कर गईं थीं , संभवतः इसीलिये सामान्य महिलाओ को व्रत का स्मरण बना रहे इस आशय से इस अवसर पर कोई गहना , कंगन आदि नियत किया जाता है , जिसे माता पार्वती को समर्पित किया जाता है व हर वर्ष उसमें कुछ मात्रा में गहने की मूल्यवान धातु का अंश बढ़ा कर उसे नया रूप दे दिया जाता है . इस तरह यह व्रत वर्ष दर वर्ष परिवार की संपन्नता  बढ़ते रहने के प्रतीक के रुप में व आर्थिक रूप से समृद्धि का द्योतक है . 

इस समय मौसम बरसाती गर्मी का रहता है शायद इसलिए पुआ दही खाने का रिवाज है । पुए में आटे व गुड़ का सम्मिश्रण होता है जो कम्पलीट इनर्जी फूड होता है ।

©  श्रीमती कल्पना श्रीवास्तव

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मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈