श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का  हिन्दी बाल -साहित्य  एवं  हिन्दी साहित्य  की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य”  के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं।  आज प्रस्तुत है पुरस्कृत पुस्तक “चाबी वाला भूत” की शीर्ष बाल कथा  “चाबी वाला भूत।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 127 ☆

☆ पुरस्कृत पुस्तक “चाबी वाला भूत” की शीर्ष बाल कथा – चाबी वाला भूत ☆ 

बेक्टो सुबह जल्दी उठा। आज फिर उसे ताले में चाबी लगी मिलीं। उसे आश्चर्य हुआ। ताले में चाबी कहां से आती है ?

वह सुबह चार बजे से पढ़ रहा था। घर में कोई व्यक्ति नहीं आया था। कोई व्यक्ति बाहर नहीं गया था। वह अपना ध्यान इसी ओर लगाए हुए था। गत दिनों से उस के घर में अजीब घटना हो रही थी।  कोई आहट नहीं होती। लाईट नहीं जलती। चुपचाप चाबी चैनलगेट के ताले पर लग जाती।

‘‘ हो न हो, यह चाबी वाला भूत है,’’ बेक्टो के दिमाग में यह ख्याल आया। वह डर गया। उस ने यह बात अपने दोस्त जैक्सन को बताई। तब जैक्सन ने कहा, ‘‘ यार ! भूतवूत कुछ नहीं होते है। यह सब मन का वहम है,’’ 

बेक्टो कुछ नहीं बोला तो जैक्सन ने कहा, ‘‘ तू यूं ही डर रहा होगा। ’’

‘‘ नहीं यार ! मैं सच कह रहा हूं। मैं रोज चार बजे पढ़ने उठता हूं। ’’

‘‘ फिर !’’

‘‘ जब मैं 5 बजे बाहर निकलता हूं तो मुझे चैनलगेट के ताले में चाबी लगी हुई मिलती है। ’’

‘‘ यह नहीं हो सकता है,’’ जैक्सन ने कहा, ‘‘ भूत को तालेचाबी से क्या मतलब है ?’’

‘‘ कुछ भी हो। यह चाबी वाला भूत हो सकता है।’’ बेक्टो ने कहा, ‘‘ यदि तुझे यकीन नहीं होता है तो तू मेरे घर पर सो कर देख है। मैं ने बड़ वाला और पीपल वाले भूत की कहानी सुनी है। ’’

जैक्सन को बेक्टो की बात का यकीन नहीं हो रहा था। वह उस की बात मान गया। दूसरे दिन से घर आने लगा। वह बेक्टो के घर पढ़ता। वही पर सो जाता। फिर दोनो सुबह चार बजे उठ जाते। दोनों अलग अलग पढ़ने बैठ जाते। इस दौरान वे ताला अच्छी तरह बंद कर देते।

आज भी उन्होंने ताला अच्छी तरह बंद कर लिया। ताले को दो बार खींच कर देखा था। ताला लगा कि नहीं ? फिर उस ने चाबी अपने पास रख ली।

ठीक चार बजे दोनों उठे। कमरे से बाहर निकले। चेनलगेट के ताले पर ताला लगा हुआ था।  

दोनों पढ़ने बैठ गए। फिर पाचं बजे उठ कर चेनलगेट के पास गए। वहां पर ताले में चाबी लगी हुई थी।

‘‘ देख !’’ बेक्टो ने कहा, ‘‘ मैं कहता था कि यहां पर चाबी वाला भूत रहता है। वह रोज चैनल का ताला चाबी से खोल देता है, ’’ यह कहते हुए बेक्टो कमरे के अंदर आया। उस ने वहां रखी। चाबी दिखाई।  

‘‘ देख ! अपनी चाबी यह रखी है,’’ बेक्टो ने कहा तो जैक्सन बोला, ‘‘ चाहे जो हो। मैं भूतवूत को नहीं मानता। ’’

‘‘ फिर, यहां चाबी कहां से आई ?’’ बेक्टो ने पूछा तो जैक्सन कोई जवाब नहीं दे सकता।

दोपहर को वह बेक्टो को घर आया। उस वक्त बेक्टो के दादाजी दालान में बैठे हुए थे।  

जैक्सन ने उन को देखा। वे एक खूंटी को एकटक देख रहे थे। उन की आंखों से आंसू झर रहे थे।  

‘‘ यार बेक्टो ! ’’ जैक्सन ने यह देख कर बेक्टो से पूछा, ‘‘ तेरे दादाजी ये क्या कर रहे है ?’’ उसे कुछ समझ में नहीं आया था। इसलिए उस ने बेक्टो से पूछा।

‘‘ मुझे नहीं मालूम है, ’’ बेक्टो ने जवाब दिया, ‘‘ कभी कभी मेरे दादाजी आलती पालती मार कर बैठ जाते हैं।  अपने हाथ से आंख, मुंह और नाक बंद कर लेते हैं। फिर जोरजोर से सीटी बजाते हैं। वे ऐसा क्यों करते हैं ? मुझे पता नहीं है ?’’

‘‘ वाकई !’’

‘‘ हां यार। समझ में नहीं आता है कि इस उम्र में वे ऐसा क्यों करते हैं। ’’ बेक्टो ने कहा, ‘‘ कभीकभी बैठ जाते हैं। फिर अपना पेट पिचकाते हैं। फुलाते है। फिर पिचकाते हैं। फिर फूलाते हैं। ऐसा कई बार करते हैं। ’’

‘‘ अच्छा !’’ जैक्सन ने कहा, ‘‘ तुम ने कभी अपने दादाजी से इस बारे में बात की है ?। ’’

‘‘ नहीं यार, ’’ बेक्टो ने अपने मोटे शरीर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘ दादाजी से बात करूं तो वे कहते हैं कि मेरे साथ घूमने चलो तो मैं बताता हूं। मगर, वे जब घूमने जाते हैं तो तीन चार किलोमीटर चले जाते हैं। इसलिए मैं उन से ज्यादा बात नहीं करता हूं। ’’ 

यह सुनते ही जैक्सन ने बेक्टा के दादाजी की आरे देखा। वह एक अखबार पढ़ रहे थे।

‘‘ तेरे दादाजी तो बिना चश्मे के अखबार पढ़ते हैं ?’’

‘‘ हां। उन्हें चश्मा नहीं लगता है। ’’ बेक्टो ने कहा।

जैक्सन को कुछ काम याद आ गया था। वह घर चला गया। फिर रात को वापस बेक्टो के घर आया। दोनों साथ पढ़े और सो गए। सुबह चार बजे उठ कर जैक्सन न कहा, ‘‘ आज चाहे जो हो जाए। मैं चाबी वाले भूल को पकड़ कर रहूंगा। तू भी तैयार हो जा। हम दोनों मिल कर उसे पकड़ेंगे ?’’

‘‘ नहीं भाई ! मुझे भूत से डर लगता है, ’’ बेक्टो ने कहा, ‘‘ तू अकेला ही उसे पकड़ना। ’’

जैक्सन ने उसे बहुत समझाया, ‘‘ भूतवूत कुछ नहीं होते हैं। यह हमारा वहम है। इन से डरना नहीं चाहिए। ’’ मगर, बेक्टो नहीं माना। उस ने स्पष्ट मना कर दिया, ‘‘ भूत से मुझे डर लगता है। मैं पहले उसे नहीं पकडूंगा। ’’

‘‘ ठीक है। मैं पकडूंगा। ’’ जैक्सन बोला तो बेक्टो ने कहा, ‘‘ तू आगे रहना, जैसे ही तू पहले पकड़ लेगा। वैसे ही मैं मदद करने आ जाऊंगा,’’

दोनों तैयार बैठे थे। उन का ध्यान पढ़ाई में कम ओर भूत पकड़ने में ज्यादा था।

जैक्सन बड़े ध्यान से चेनलगेट की ओर कान लगाए हुए बैठा था। बेक्टो के डर लग रहा था। इसलिए उस ने दरवाजा बंद कर लिया था।  

ठीक पांच बजे थे। अचानक धीरे से चेनलगेट की आवाज हुई। यदि उसे ध्यान से नहीं सुनते, तो वह भी नहीं आती।

‘‘ चल ! भूत आ गया ,’’ कहते हुए जैक्सन उठा। तुरंत दरवाजा खोल कर चेनलगेट की ओर भागा।

चेनलगेट के पास एक साया था। वह सफेद सफेद नजर आ रहा था। जैक्सन फूर्ति से दौड़ा। चेनलगेट के पास पहुंचा। उस ने उस साए को जोर से पकड़ लिया। फिर चिल्लाया, ‘‘ अरे ! भूत पकड़ लिया। ’’

‘‘ चाबी वाला भूत !’’ कहते हुए बेक्टो ने भी उस साए को जम कर जकड़ लिया।  

चिल्लाहट सुन कर उस के मम्मी पापा जाग गए। वे तुरंत बाहर आ गए।

‘‘ अरे ! क्या हुआ ? सवेरेसवेरे क्यों चिल्ला रहे हो ?’’ कहते हुए पापाजी ने आ कर बरामदे की लाईट जला दी।

‘‘ पापाजी ! चाबी वाला भूत !’’ बेक्टो साये को पकड़े हुए चिल्लाया।

‘‘ कहां ?’’

‘‘ ये रहा ?’’

तभी उस भूत ने कहा, ‘‘ भाई ! मुझे क्यों पकड़ा है ? मैं ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? ’’ उस चाबी वाले भूत ने पलट कर पूछा।

‘‘ दादाजी आप !’’ उस भूत का चेहरा देख कर बेक्टो के मुंह से निकल गया, ‘‘ हम तो समझे थे कि यहां रोज कोई चाबी वाला भूत आता है,’’ कह कर बेक्टो ने सारी बात बता दी।  

यह सुन कर सभी हंसने लगे। फिर पापाजी ने कहा, ‘‘ बेटा ! तेरे दादाजी को रोज घूमने की आदत है। किसी की नींद खराब न हो इसलिए चुपचाप उठते हैं। धीरे से चेनलगेट खोलते हैं। फिर अकेले घूमने निकल जाते हैं। ’’

‘‘ क्या ?’’

‘‘ हां !’’ पापाजी ने कहा, ‘‘ चूंकि तेरे दादाजी टीवी नहीं देखते हैं। मोबाइल नहीं चलाते हैं। इसलिए इन की आंखें बहुत अच्छी है। ये व्यायाम करते हैं। इसलिए अँधेरे में भी इन्हें दिखाई दे जाता है। इसलिए चेनलगेट का ताला खोलने के लिए इन्हें लाइट की जरूरत नहीं पड़ती है। । ’’

यह सुन कर बेक्टो शरमिंदा हो गया,। वह अपने दादाजी से बोला, ‘‘ दादाजी ! मुझे माफ करना। मैं समझा था कि कोई चाबी वाला भूत है जो यहां रोज ताला खोल कर रख देता है। ’’

‘‘ यानी चाबी वाला जिंदा भूत मैं ही हूं, ’’ कहते हुए दादाजी हंसने लगे।

बेक्टो के सामने भूत का राज खुल चुका था। तब से उस ने भूत से डरना छोड़ दिया।

© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”

पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़-४५८२२६ (नीमच) म प्र

ईमेल  – [email protected]

मोबाइल – 9424079675

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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