॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ विचार का महत्व ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
ऐसा शायद ही कोई हो जिसके मन में कोई विचार न उठते हों। हमेशा ही हर एक के मन में विचार आते रहते हैं। अगर कुछ अन्य नहीं तो यह ही कि आराम और सुख पाने को क्या किया जाय। जीवन में विचारों का बड़ा महत्व है। विचार ही सृजन के आधार है। जब तक कोई विचार उत्पन्न नहीं होता, तब तक व्यक्ति कोई क्रिया नहीं करता। और यदि क्रिया न हो तो कोई निर्माण नहीं हो सकता। किसी भी उदाहरण से इसे सरलता से समझा जा सकता है। विचार ही कार्य हेतु प्रेरक होता है। यदि बादशाह शाहजहाँ को अपनी पत्नी मुमताजमहल के लिए अप्रत्तिम सुन्दर मकबरा बनवाने का विचार न आया होता तो विश्वप्रसिद्ध ताजमहल जिसे देखने की लालसा संसार के हर भाग में चाहे वह कहीं भी रहता हेा व्यक्ति को बनी रहती है, न बना होता।
हर कृति, हर निर्माण, हर उपलब्धि के लिए पहले विचार आवश्यक है। परन्तु जीवन में सामान्यत: विचारों को उचित महत्व नहीं दिया जाता। कई विचार उठते हैं और समाप्त हो जाते हैं और हमेशा के लिए खो जाते हैं। प्रक्रिया आगे बढऩे नहीं पाती। मनुष्य के मस्तिष्क में विचारों की लहरियाँ उसी तरह खेलती हैं जैसे समुद्र में जलोर्मियाँ। बहुत सी लहरें तट तक आती और उसे छूकर गीला कर समाप्त हो जाती है। किन्तु कुछ लहरें इतनी प्रबल होती है कि वे तट पर स्थित चट्ïटानों और बस्तियों को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। यही बात निरन्तर उठने वाले विचारों पर भी लागू होती हैं। कुछ तो कमजोर होते हैं पर कुछ इतने प्रबल होते हैं कि उनका प्रभाव मानव चेतना पर पड़ता है। ऐसे अनेकों महापुरुष, समय-समय पर इस धराधाम में आये जिनके विचारों ने जनजीवन में भारी परिवर्तन लाया है। ऐसे महान व्यक्ति धार्मिक, सामाजिक सांस्कृतिक, राजनैतिक व आर्थिक सभी क्षेत्रों में हुए हैं। महात्मा बुद्ध, महावीर, ईसा मसीह, मौहम्मद पैगम्बर, कबीर, तुलसीदास, कार्ल माक्र्स, महात्मा गांधी, इत्यादि उन्हीं महानों में से कुछ हैं जिनके विचारों ने मानव समाज को संपूर्ण विश्व में एक नई दिशा और नई दृष्टिï दे, नई जीवनी शक्ति दी है। इनके विचारों ने अनुपम साहित्य का सृजन किया है। इसी से विचारब्रह्म या शब्दब्रह्म की परिकल्पना की गई है। जो सतï्-चितï् आनन्द का पर्याय है। सदï्विचार ही जीवन के नव निर्माता पोषक प्रकाशदाता तथा अमरता देनेवाले होते हैं। इसी से हमारी वैदिक संस्कृति का उदï्घोष है- ‘असतो मा सदï्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मामृतगमय।’
जो जैसा सोचता-विचारता है, वैसा ही बन जाता है। इसीलिये सभी के लिये सही सोच सही विचार या सही चिन्तन परम आवश्यक है। एक के विचार अनेकों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। माता-पिता के विचार संतान पर, शिक्षक के छात्रों पर, अधिकारी के अपने अधीनस्थों पर तथा नेताओं के समाज पर व अनुयायियों पर निश्चित असर डालते हैं। कहावत है-”यथा राजा तथा प्रजा’’। इसीलिये सुविचारवान, विवेक शील शिक्षक को राष्टï्र निर्माता कहा गया है क्योंकि अपने शिक्षकीय जीवनकाल में वह अपने विचारों और व्यवहारों या चरित्र से बहुत बड़ी संख्या में अपने छात्रों को जो देश के भावी नागरिक होते हैं, प्रभावित करता है।
अपने उच्च आदर्श, गंभीर चिन्तन और आध्यात्मिक सोच के कारण ही भारत को विश्व में अनुकरणीय धर्मगुरु का सम्मान प्राप्त है।
सही विचारों पर ध्यान केन्द्रित करना सबके कल्याण की कामना कर चिन्तन करना एक आह्लादकारी प्रक्रिया है। यह मन और जीवन को पावनता प्रदान करने का उत्तम साधन है। सद्ïविचार और सदाचार धन से अधिक मूल्यवान है। यह एक सुखद जनहितकारी मंगल अनुष्ठान है। आत्मोत्कर्ष और मानव कल्याण हित सद्ïविचारों की उत्पत्ति वैसी ही आवश्यक और महात्वपूर्ण है जैसे जीवन रक्षा के लिये कृषि द्वारा अन्नोत्पादन।-
एकेनैव सुविचारेण विश्व: याति उन्नतिम्,
कुविचारेण किन्तु प्राय: दु:खं गत्वाविनश्यति॥
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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