॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ सहयोग ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
संकल्प, बल और बुद्धि में एक दिन विवाद हो रहा था। प्रत्येक को अभिमान था कि उसके बिना सफलता की प्राप्ति असंभव है। विवाद समाप्त होने नहीं आ रहा था। बिना किसी योग्य निर्णायक के फैसला कैसे हो? खैर तीनों इस बात पर राजी हुये कि विवेक से इस विषय पर उसका अभिमत जाना जाय। जो वह कहे उसे मान लिया जाय। तीनों विवेक के पास जाकर उन्होंने उससे अपना निर्णय देने की प्रार्थना की। विवेक ने सोचा कि यदि वह किसी एक का नाम लेगा तो उस पर पक्षपात का आरोप लग सकता है और शेष दो आक्रोशित हो सकते हैं। इसलिये उसने प्रत्यक्ष प्रयोग विधि से सबको अपने निर्णय को मान्य कराने का सोचा। वह तीनों को साथ ले गांव में गया। गली में खेलते हुये बालक दिखे। विवेक ने एक को बुला उसे एक टेढ़ी छोटी लोहे की छड़ और वजनदार हथोड़ा दिखाकर जो उसने प्रयोग के लिये साथ रख लिया था, पूछा क्या वह हथौड़े से टेढ़ी छड़ को सीधी कर सकता है? बालक ने खेल समझकर कोशिश की। हथौड़ा वजनदार था इससे वह उसे उठा न सका। इच्छा होते भी बल या शक्ति की कमी के कारण काम न हो सका। आगे बढऩे पर एक श्रमिक एक पेड़ की छाया में लेटा हुआ दिखा। विवेक ने उसे वह टेढ़ी छड़ और हथौड़ा दिखाकर पूछा क्या वह उस छड़ को ठोंककर सीधी कर सकेगा। श्रमिक ने कहा- यह भी क्या कोई बड़ी बात है? पर चूंकि वह भोजन करके थोड़ा विश्राम कर रहा था इसलिये उसने कहा उसका उस समय परिश्रम करने का मन नहीं है। बाद में कर देगा। काम न होने से वे सब और आगे गये। खेत की ओर जाता हुआ एक हष्ट-पुष्ट किसान दिखा। उसके पास पहुंचकर विवेक ने तीनों के समक्ष उससे वह छड़ और हथौड़ा (धन) दिखाकर पूछा कया वह उस छड़ को सीधी कर सकने की कृपा करेगा। उसने कहा- भैया ये भी भला क्या कोई बड़ी बात है? उसने छड़ को वहीं जमीन पर रखकर, मन से उस पर पूरी ताकत से प्रहार किया पर छड़ सीधी न होकर जमीन में धंस गई और धूल उड़ी जो सहसा किसान की आंख में लगी। कार्य सम्पन्न न हो सका क्योंकि किसान ने कार्य संपादित करने के लिये बुद्धि का सही उपयोग नहीं किया। यदि कोई पत्थर या कड़े धरातल पर छड़ को रखकर पीटा जाता तो छड़ सीधी हो गई होती। तीनों प्रकरणों को दिखाकर विवेक ने बताया कि पहले प्रकरण में बालक में बल की कमी थी, दूसरे प्रकरण में श्रमिक में क्षमता तो थी पर संकल्प की कमी थी और तीसरे प्रकरण में किसान में सही बुद्धि की कमी थी। इससे छोटी सी छड़ सीधी नहीं हो सकी। तीनों घटनाओं की विवेचना से तीनों- संकल्प, बल और बुद्धि की समझ में आ गया कि सफलता पाने में किसी एक का विशेष महत्व नहीं है वरन् तीनों के सहयोग और समन्वय का महत्व है। न कोई बड़ा है न छोटा। सभी तीनों समान रूप से महान हैं। सभी को सम्मिलित रूप से श्रेय दिया जाना उचित है। किसी को अपना अभिमान नहीं होना चाहिये। निर्णय को तीनों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया, विवाद समाप्त हो गया।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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