॥ मार्गदर्शक चिंतन

☆ ॥ ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्या ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆

सोती हुई आंखों से देखे जो जाते हैं उन्हें स्वप्न कहा जाता है और जागते हुये जो कुछ देखा जाता है उसे सत्य कहा जाता है। जन सामान्य में व्यवहारिक धारणा यही है, किन्तु क्या यह सर्वथा सत्य है? कवि, चित्रकार या वास्तुविद किसी रचना के पहले अपनी रचना का मानसिक प्रतिरूप तैयार करता है। उसके बाद ही अपनी कल्पना को शब्दों या रेखाओं और रंगों से उकेर कर रूप देता है। वह जो सोचता विचारता है वह कल्पना भी उसका स्वप्न होता है। इसीलिये ‘स्वप्न का साकार करना’ एक मुहावरा बन गया है, जिसका अर्थ है कल्पना को वास्तविकता में बदल देना या निर्माण करना। इस प्रकार अपने काल्पनिक चित्र को वास्तविकता में प्रकट कर देने में कर्ता या कलाकार को एक आनन्द और सुख मिलता है।

हर एक के मन में हमेशा कुछ विचार और उनका चित्र उभरते रहते हैं। नींद में देखे जाने वाले अच्छे या बुरे बहुत से स्वप्नों का जैसे कोई उपयोग नहीं होता ऐसे ही बहुत से काल्पनिक चित्र और विचार निरर्थक ही होते हैं और समय की तरंगों के साथ खो जाते हैं। पर कुछ इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि वे जीवन की भावी इमारत को सही रूप देने में सहायक होते हैं और वे एक ही व्यक्ति की नहीं बल्कि उससे संबंधित अनेकों के जीवन को प्रभावित करते हैं। उन पर भविष्य के नव निर्माण की नींव खड़ी कर दी जाती है। ऐसे सार्थक विचारकों और महत्वपूर्ण स्वप्नों के सजाने वालों को चिन्तक, विचारक या स्वप्नदृष्टा कहा जाता है। इन स्वप्नदृष्टा विचारकों और चिन्तकों की भी दो श्रेणियां हैं। एक वे हैं जो इस विश्व में जो प्रकृति प्रदत्त है और दृश्यमान है उस पर चिन्तन खोज और प्रकृति के रहस्यों को उद्घाटित कर नये-नये अविष्कार करके इस धराधाम में सुख-सुविधायें उपलब्ध कराने में लगे हैं। ये भौतिक शास्त्री या विज्ञानी है। जो कुछ संसार में दिखाई देता है वह सभी परिवर्तन शील है और नाशवान है अत: अनित्य है। इसकी अध्ययन और खोज इन भौतिक विज्ञानियों का काम है। दूसरे वे लोग हैं जो इनसे भिन्न हैं। वे अपने चिन्तन मनन से उन तत्वों पर खोज या अनुसंधान करते हैं जो आंखों को दिखाई नहीं देता। जैसे प्राणियों के शरीर और प्रकृति का सारा स्वरूप तो देखा जा सकता है परन्तु शरीर को संचालित करने वाली चेतना जिसे आत्मा कहा जाता है अदृश्य है। मनुष्य या प्राणियों के मृत्यु के उपरांत शरीर तो रह जाता है परन्तु अदृश्य चेतना आत्मा कहीं चली जाती है। आत्मा जैसे अदृश्य है वैसे ही परमात्मा अदृश्य है। इन अदृश्य तत्वों के विचारकों को अध्यात्म विज्ञानी या अध्यात्मिक चिन्तक कहा जाता है। ये उन अदृश्य तत्वों पर विचार और अनुसंधान करते हैं जो अदृश्य हैं अनश्वर हैं। इन्हीं के चिन्तन के परिणाम स्वरूप मनुष्य को यह ज्ञान हो सका कि ईश्वर नाम की महाशक्ति भी है जिसने सारी सृष्टि रची है और उसका वह संचालन भी कर रही है। यह अनश्वर अर्थात् नष्ट न होने वाला तत्व नित्य है अजर अमर है।

जो कुछ नाशवान है उसे धर्मगुरुओं ने मिथ्या कहा है और जो अमर है अपरिवर्तनशील है उसे सत्य कहा है। आदि शंकराचार्य का यह कथन- ‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’ का अर्थ यही है कि आत्मा व परमात्मा नित्य है इसलिये सत्य है और जगत अर्थात् संसार में अन्य जो कुछ भी दिखाई देता है व परिवर्तनशील और नाशवान है इसलिये वह सब मिथ्या है।

संसार का जीवन में अपना बड़ा महत्व है व्यक्ति के लिये सदा मतलब भी रखता है। कई लोग जो यह अर्थ निकालते हैं कि जगत का कोई अस्तित्व ही नहीं है केवल आत्मा या ईश्वर तत्व ही है, अनुचित है और गलत है। सत्य और मिथ्या शब्दों का सही अर्थ समझ कर उनके उक्त सूत्र को सही समझकर अर्थ करना चाहिये।

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

 ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, म.प्र. भारत पिन ४६२०२३ मो ७०००३७५७९८ [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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