॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ हमारा नैतिक पतन ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
आज हमारा समाज जिस दौर से गुजर रहा है उसका चित्र प्रत्येक दिन अखबारों व टीवी के समाचारों द्वारा दिखाया जा रहा है। लोग ईमानदारी और सदाचार का मार्ग छोडक़र छोटे-छोटे लालचों में फंसे दिखते हैं। लालच प्रमुखत: धन प्राप्ति का है परन्तु साथ ही कामचोरी का भी दिखाई देता है। धन प्राप्ति के लिये लांच-घूंस, भ्रष्टाचार, लूट के मामले सामने आते हैं। छोटे व्यक्तियों की बात तो क्या ऊंचे पदों पर आसीन व्यक्ति भी नियम-कायदों की घोर उपेक्षा कर मन माफिक धन संचय के लिये कुछ भी गलत करने में नहीं हिचकिचाते। बड़ों में राजनेता और उच्च पदस्थ वे अधिकारी भी हैं जिन्हेें समाज को मार्गदर्शन देना चाहिये। चूंकि बड़ों का अनुकरण समाज प्राचीन काल से करता आया है इसलिये आज समाज का छोटा वर्ग भी इसी चारित्रिक गिरावट में दिखाई देता है। भ्रष्टाचरण हर जगह सामान्य हो चला है, जिसे जहां मौका मिलता है वहीं वह गबन कर बैठता है। घूंस स्वीकार कर नियम विरुद्ध कार्य करने को तैयार है। अपने कर्तव्यों और अपने उत्तरदायित्वों के प्रति लोगों की निष्ठा जैसे समाप्त हो चली है। आये दिन खबरें छपती हैं, शिक्षक अपने छात्रों को शिक्षित करने में रुचि न लेकर कार्यस्थल से ड्यूटी की अवधि में अनुपस्थित रहते हैं। डॉक्टर समय पर अस्पतालों में नहीं पहुंचते, मरीजों के दुख तकलीफों को दूर करने में रुचि नहीं लेते। अस्पताल से जल्दी घर चले जाते हैं। घरों में प्रायवेट प्रेक्टिस करते हैं। अस्पताल में आये हुये गरीब मरीजों की प्रार्थनाओं पर न तो ध्यान देते हैं न रहम करते हैं। अस्पताल में आये हुये गरीब मरीजों की प्रार्थनाओं पर न तो ध्यान देते और न दवा करते, केवल पैसों पर और अपनी कमाई पर ध्यान रखते हैं। गांव से बड़े शहरों तक के प्राय: सभी जन सेवक जनसेवा नहीं धन सेवा में मस्त हैं। अधिकारी वर्ग तक जो ऊंची तनख्वाह पाते हैं कर्तव्य के प्रति लापरवाह हैं। अपने परिवार की सुख सुविधाओं को प्राथम्य देते हैं। अपने आराम को दुखियों के दुखों से अधिक महत्व देकर सब कार्य कर रहे हैं। केवल स्वत: ही नहीं अपने पुत्र-पुत्रियों से रिश्तेदारों तक को नियमों के विपरीत सुविधायें उपलब्ध कराने में अपना बड़प्पन समझते हैं, जबकि ऐसे प्रसंगों में उन्हें और उनके संबंधियों को शर्म आनी चाहिये। क्योंकि वे जनसेवा में व्यवधान उत्पन्न कर गरीबों के हकों पर डाका डाल रहे हैं। प्रादेशिक असेम्बिलियों तथा लोकसभा तक के सदस्य राजनेता समय और धन का दुरुपयोग कर अपने निर्धारित कर्तव्यों की उपेक्षा कर शासकीय धन का अपव्यय कर रहे हैं।
धन के अपव्यय या गबन के प्रसंग उजागर होने पर जांच कमीशन नियुक्त कर दिया जाता है, जो स्वत: समय और धन के व्यय के बाद भी शायद वांछित परिणाम विभिन्न कारणों से नहीं दे पाता है। जिस देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के आंदोलन में स्वेच्छा से कर्तव्यनिष्ठ लोगों ने अपने प्राणों की आहुति हँसते-हँसते दी थी, उन्हें क्या मालूम था कि आजादी के बाद उन्हीं के देशवासी स्वार्थ के लिये देशवासियों के प्राणों की आहुति लेने में भी संकोच नहीं करेंगे। जगह-जगह आतंकवादी निरपराधियों को बिना किसी डर और संकोच के मार रहे हैं। बलात्कारी राक्षस तुल्य व्यवहार कर अबोध बालिकाओं का, निडर हो पशुवत शिकार कर रहे हैं। निरीह जन साधारण अपने अधिकारों से वंचित किये जा रहे हैं। बेरहमी देश में ताण्डव नृत्य कर रही है। वे लोग जो सुरक्षा के लिये तैनात है स्वत: भक्षक सा व्यवहार करते देखे जाते हैं। सामाजिक पूज्य संबंधों की मान्यताओं को मानने से अपने कर्तव्यों को भुला अनुचित शोषण किया जा रहा है। यह सब क्या हो रहा है?
इन सबका सबसे बड़ा कारण धार्मिक मान्यताओं की घोर उपेक्षा और शासन के कानूनों की निडरता से अव्हेलना है। धार्मिक मान्यतायें ही नैतिक चरित्र का निर्माण और परिपालन करती हैं जिनसे मनुष्य स्वानुशासित होता है। समाज में शांति, सुरक्षा और व्यवस्था स्वत: ही बनी रहती है। किन्तु आज सब प्राचीन ताना-बाना विभिन्न कारणों से छिन्न-भिन्न हो गया है। शासन भी व्यवस्था बनाये रखने में लगता है, अलग हो गया है। एक बहुत बड़ा कारण राजनीति का अमर्यादित हो धर्म मर्यादा से निर्भीक होकर कार्य करना है जिसने पूरे देश को अपने शिकंजे में जकड़ लिया है। लोगोंं ने धर्म और ईश्वर की उपेक्षा करके अपने को क्रांतिकारी वीर बताना सीख लिया है।
अव्यवस्थित, अमर्यादित और अनैतिक समाज या देश सही अर्थ में प्रगति और वास्तविक विकास नहीं कर सकता। सारा प्रदर्शन केवल एक आडम्बर मात्र रह जाता है। अत: हमें नैतिक और कर्तव्यनिष्ठ बनने की आज सबसे ज्यादा जरूरत है। नैतिकता से जीवन में शुचिता पवित्रता आती है और समाज में परिस्परिक विश्वास, व्यवहारों में पारदर्शिता और सुख समृद्धि तथा निर्भीकता प्राप्त होती है। सब कार्य सरलता से चलते हैं। नैतिक पतन समाज के नये नये दुखों और समस्याओं की जड़ है।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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