॥ मार्गदर्शक चिंतन॥
☆ ॥ आत्मविश्वास ॥ – प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’☆
जहां न साधन साथ निभाते, फीकी पड़ जाती हर आश।
वहां अडिग चट्टान सरीखा, आता काम आत्मविश्वास॥
जिसमें आत्मविश्वास प्रबल है उसकी विजय प्राय: सुनिश्चित होती है। कोई भी कार्य छोटा हो या बड़ा, सरल हो या कठिन काम करने वाले के मन में सफलता पाने का आत्मविश्वास का होना बहुत जरूरी है। विश्व इतिहास के पन्ने, आत्मविश्वासी की विजयों से भरे पड़े हैं। क्षेत्र राजनीति का हो या विज्ञान का, व्यक्ति के आत्मविश्वास ने समस्याओं का सदा समाधान कराया है। चन्द्रगुप्त के आत्मविश्वास ने भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यूरोप में नेपोलिय बोनापार्ट की हर जीत का रहस्य उस का आत्मविश्वास ही था। विज्ञान के क्षेत्र में किसी भी नये अविष्कार के लिये वैज्ञानिक की लगन, परिश्रम और सूझबूझ के साथ ही आत्मविश्वास और धैर्य के बल पर ही सफलता प्राप्त होती है। आत्मविश्वासी वीरों ने ही हिमालय की सर्वोच्च ऊंची चोटी गौरीशंकर जिसे एवरेस्ट भी कहा जाता है तक पहुंचकर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया है। आत्मविश्वास व्यक्ति को निडर, उत्साही और धैर्यवान बनाता है।
सामान्य जीवन में भी जिनमें आत्मविश्वास होता है वे किसी भी कार्य को करने से न तो हिचकिचाते हैं और न पीछे हटते हैं। विद्यार्थी जीवन में देखें तो परीक्षा देना तो अनिवार्य है। बिना परीक्षा पास किये कोई आगे नहीं बढ़ सकता। उसे वांछित लक्ष्य नहीं मिल सकता पर कई छात्र परीक्षा के नाम से घबराते हैं। क्योंकि उन्हें अपने अध्ययन और अभ्यास पर पूरा पूरा विश्वास नहीं होता। डर लगता है कि कहीं परीक्षा में फेल न हो जाये। किन्तु जिस छात्र के मन में अपने पर पूरा विश्वास होता है उसे परीक्षा न केवल आसान लगती है बल्कि उसे परीक्षा देना और विशेष योग्यता प्रदर्शित कर पास होना एक खेल सा सरल काम लगता है। वह तो चाहता है कि परीक्षा का अवसर हो और वह उसमें सफल होकर यश अर्जित करे। आत्मविश्वास एक ऐसा गुण है जो जीवन को सहज और सुखद बनाता है। सफलता उसके लिये प्रसन्नता का कारण होती है। आत्मविश्वास हिम्मत बढ़ाता है। आत्मविश्वास का अभाव शंकाओं को जनम देता है और कार्यसिद्धि में व्यवधान बनता है। प्राय: समझा जाता है कि नारी जाति में समस्याओं से जूझने का आत्मविश्वास नहीं होता परन्तु यह बात पूर्णत: सही नहीं है भारत में ही गोंडवाना की रानी दुर्गावती ने सम्राट अकबर से टक्कर लेने का साहस दिखाया था। सन् 1856 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वीरता से लड़ते हुये झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने एक वीर सैनिक के वेश में युद्ध कर अंग्रेज सेना के दांत खट्टे कर दिखाया। आज कल बोर्ड और यूनीवर्सिटी की परीक्षाओं में लड़कियां अच्छे अंक प्राप्त कर मेरिट लिस्ट में अपने समकक्ष लडक़ों से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन कर पुरस्कार की हकदार बन रही हैं। यह उनके आत्मविश्वास से कार्य करने का प्रमाण है।
प्रकृति ने हर व्यक्ति को आत्मविश्वास का वरदान दिया है। व्यक्ति उसे समझकर हमेशा दृढ़ता से काम करे। उस गुण को बढ़ाने की आवश्यकता है। व्यक्ति खुद को कमजोर या हीन न समझे। अपनी पूरी सामथ्र्य से कार्य हेतु खुद को समर्पित कर लक्ष्य को पाने की भावना मन में जगा ले, तो आत्मविश्वास बढ़ता जाता है। मार्ग की कठिनाइयां अपने आप समाप्त होती दिखती हैं। रुचि व उत्साह से कार्य में जुट जाने की आदत बन जाती है। दूसरों से अनुमोदन या प्रशंसा पाकर भी आत्मविश्वास बढ़ता है। उत्साह जागता है। कार्य में रुचि उत्पन्न होती है इसीलिये शिक्षकों द्वारा कक्षा में योग्य छात्रों की प्रशंसा करना उचित है। यह नये-नये गुणों के विकास में सहायक होता है। समाज में अच्छे कार्यकर्ताओं को पुरस्कारों की व्यवस्था भी इसीलिये की जाती है कि पुरस्कार पाकर उनमें आत्मविश्वास बढ़े और वह पुरस्कार उन्हें ही नहीं दूसरों को भी प्रोत्साहित कर सके।
प्रोत्साहन से कार्यक्षमता बढ़ती है, रुचि और उत्साह जागृत होते हैं और सफलता पाना सरल हो जाता है। प्रोत्साहन बाहरी आवश्यकता है परन्तु अपने गुणों को प्रखर करने में आत्मविश्वास की बड़ी भूमिका है और जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका है। आत्मविश्वास से जीवन को हर क्षेत्र में बढऩा आसान हो जाता है। किसी भी काम को पूरे विश्वास के साथ करके सफलता पाने की मनोभावना को आत्मविश्वास कहा जाता है जो बुद्धिमान और परिश्रमी व्यक्ति के लिये अपने खुद में जगाना कठिन नहीं है।
© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
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