श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है.

श्री अरुण डनायक जी ने महात्मा गाँधी जी की मध्यप्रदेश यात्रा पर आलेख की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार की है। आप प्रत्येक सप्ताह बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में  के अंतर्गत महात्मा गाँधी जी  की यात्रा की जानकारियां आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ आलेख #88 – महात्मा गांधी के चरण देश के हृदय मध्य प्रदेश में (भोपाल एवं जबलपुर) – 4 ☆ 

गांधीजी का मध्यप्रदेश में छठवीं बार आगमन 1933 में हुआ और इस दौरान वे बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा, बैतूल,इटारसी  सागर, दमोह, कटनी, जबलपुर, मंडला , सोहागपुर,  बाबई, हरदा, खंडवा गए। गांधीजी ने 28 नवंबर 1933 से शुरू किए अपने इस दौरे में कुल सत्रह दिन मध्य प्रदेश में बिताए। इस हरिजन दौरे के दौरान उन्होंने  अस्पृश्यता निर्मूलन और जातिगत ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करने पर बल दिया।  उनके दमोह और सागर दौरे की कुछ झलकियां निम्न हैं:-     

गांधीजी का दमोह  आगमन – महात्मा गांधी रेहली तथा गढाकोटा होते हुए 2 दिसंबर,1933 को क्षेत्र के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी पंडित जगन्नाथ प्रसाद पटैरिया शेवरले कार से दमोह पहुंचे। चुंगी नाके पर उनका स्वागत किया गया तथा उन्हें एक विशाल जूलूस में मुख्य बाजार ले जाया गया। दमोह में उनका अभूतपूर्व स्वागत किया गया, उनके सिर पर छत्र रखा गया, सड़कों पर अभ्रक डाला गया और पूरे रास्ते उन पर पुष्पवर्षा की गई। गांधीजी ने वर्तमान गांधी चौक  में एक विशाल सभा को संबोधित किया,जहाँ झुन्नी लाल वर्मा द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। अन्य स्थानों की भांति यहां भी उन्हें थैलियां भेंट की गयी। इस अवसर पर दमोह की यह विशेषता रही कि यहां ईसाईयों ने भी, जिनमें अंग्रेज भी शामिल थे, थैली प्रदान करी। इससे गांधीजी अत्यंत प्रसन्न हुये। बाद में उन्होंने हरिजनों के लिए एक बाल्मीकि गुरुद्वारे का भूमिपूजन किया था। इधर दमोह में आज जहां टोपी लेन है, वहां सैकड़ों टेलर मास्टर जमा थे। लोग गांधी टोपियां सिला रहे थे।

सागर :-  “संसार के सर्वश्रेष्ठ महान पुरुष,त्यागी महात्मा गांधी का हृदय से स्वागत कीजिए” यह पंक्तियां उस आमंत्रण पत्र  का हिस्सा हैं जो 1, 2 व 3 दिसंबर,1933 को बापू के सागर जिले के विभिन्न स्थानों के  दौरे के लिए छापा गया था। बापू का कार्यक्रम मूलतः आज के देवरी विधानसभा क्षेत्र में स्थित अनंतपुरा गांव जाने के लिए बना था, जहां उन्हें एक नवयुवक जेठालाल द्वारा संचालित  ‘खादी निवास’ नामक बुनकरों की बस्ती में चल रहे काम का निरीक्षण करना था। गांधीजी  नरसिंहपुर जिले के करेली रेलवे स्टेशन पर 1 दिसंबर 1933 उतरे और  करेली और बरमान के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हुए वे कार से देवरी पहुंचे थे, जहां दलितों के बीच उन्होंने आधा घंटा बिताया और मुरलीधर मंदिर के कपाट हरिजनों के लिए खुलवा  दिए। इसके बाद वे  अनंतपुरा ग्राम में पूरा दिन और पूरी रात रुके। बाद में गांधीजी ने ‘अनंतपुरा में मैंने क्या देखा’ प्रसंशात्मक  लेख लिखा, जो 15 दिसंबर 1933 के हरिजन में छपा।  

गांधी का आगमन सागर के लिए बड़ी घटना थी। यहाँ भी उन्होंने कोरी समाज के मंदिर की नींव रखी। दलितों को जहां मंदिर प्रवेश में दिक्कतें थीं तो उनके खुद के पूजास्थल बनवाना भी उस समय क्रांतिकारी कदम था। गांधीजी ने  गल्लामंडी प्रांगण की आमसभा को संबोधित किया और फिर इसी कार्यक्रम में गांधी अपने उपयोग की चीजें भी नीलाम कर हरिजन आंदोलन के लिए धन एकत्रित किया। बहुतों ने सामान खरीदा। कइयों ने सामान लिए बिना भी अपने गहने और रूपये गांधी जी को दे दिए।

गांधी यात्रा के कुछ संस्मरण :-      

(i) गांधीजी  जब रायपुर से बिलासपुर जा रहे थे तो रास्ते में एक वृद्धा मोटर के सामने खडी हो गयी और बोली की मरने के पहले वह गांधीजी के चरण धोकर पुष्प चढ़ाना  चाहती है। गांधीजी ने हंसकर कहा कि इसके लिए वे एक रुपया लेंगे। वृद्धा के पास रुपया न था वह बोली मैं घर जाकर देखती हूँ शायद कुछ मिल जाय। आसपास खड़े लोगों ने उसे रुपया देना चाहा पर वह इसके लिए तैयार न हुई, गांधीजी ने भी हँसते हुए अपने चरण आगे बढ़ा वृद्धा की इच्छा पूरी की। बिलासपुर में गांधीजी की विशाल सभा शनिश्चरा पड़ाव पर हुयी। सभा की समाप्ति पर लोग चबूतरे की ईंट, पत्थर और  मिटटी तक घर ले गए.

(ii)  गांधीजी के बैतूल से इटारसी जा रहे थे। एक छोटे से स्टेशन ढोढरा पर रेल गाडी रुकी, बाहर अपार जनसमूह महात्मा गांधी की जय के नारे लगा रहा था। दीनता और गरीबी इतनी की आम जन के पास ठीक से तन ढकने को कपडे तक न थे। गांधीजी डिब्बे से बाहर आये, मनकीबाई नामक महिला ने उन्हे माला अर्पित की और गांधीजी को कुछ सिक्के यह कहते हुए दिए कि उसने गांव  वालों से एक एक पैसा मांगकर एकत्रित किया है। गांधीजी ने इसे दरिद्रनारायण का प्रसाद मानते हुए ग्रहण किया.

क्रमशः….

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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