श्री सूरज कुमार सिंह
(युवा साहित्यकार श्री सूरज कुमार सिंह जी ने साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न प्रयोग किये हैं। वृद्धावस्था में अकेलेपन को लेकर रचित यह लघुकथा भी ऐसे ही प्रयोग का परिणाम है। अतिसुन्दर शब्दशिल्प में रचित इस लघुकथा कलयुग का कल्पतरु की सकारात्मकता अन्तर्निहित है। )
☆ कलयुग का कल्पतरु ☆
कल्पतरु वृक्ष से जुड़ी एक अनोखी मान्यता है। ऐसा माना जाता है कि यह वृक्ष समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे और यह भी कि ये लोगों की इच्छाएं पूरी करते हैं। इसके पत्ते भी सदाबहार रहते हैं। भारत मे ऐसे सिर्फ नौ वृक्ष हैं। इनमे से दो, जवाहर मिश्र जी उर्फ़ पंडित जी के रांची स्थित आवास के समीप हैं।
हर प्रातः काल भ्रमण के दौरान वे कल्पतरु के पास से गुज़रते थे। उन्हे दोनो वृक्षों और अपने बीच एक समानता की अनुभूति होती और अंतर्मन मे एक सहानुभूति भी। यह एक सत्य है की वह स्वयं भी प्रिय जनो की इच्छाएं पूरी करने वाले बनकर रह गए थे। पर वह कल्पतरु की तरह सदाबहार नही थे। उम्र निरंतर ढल रही थी। हां, पर फिर भी एक और समानता अवश्य थी! जिस तरह मनोकामना की पूर्ति होते ही लोग कल्पतरु वृक्ष को भूलकर उससे दूर चले जाते, पंडित जी के प्रिय जनों ने भी उनके साथ ठीक यही किया था।
पर पंडित जी इतने कमज़ोर दिल वाले भी नही थे। पत्नी के गुज़र जाने के बाद अपने जीवन की राह सुनिश्चित की और उस पर तब तक चलते रहे जब तक कदम खुद-ब-खुद रुके। वह भले ही ज़्यादा समय हमारे बीच नही रहे पर जब तक जिये विराट कल्पतरु के समान, पूरे आत्मसम्मान से जिये।
© श्री सूरज कुमार सिंह
रांची, झारखंड