हिन्दी साहित्य – कथा-कहानी ☆ बच्चे ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका)

श्री विजय कुमार

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी  की लघुकथा  “बच्चे)

☆ लघुकथा – बच्चे ☆

ऑफिस के सामने खाली पड़े प्लाट में एक कुतिया ने बच्चे दिए हुए थे। अब कॉलोनी का कोई भी व्यक्ति वहां से गुजरता तो वह उस पर भौंकने लगती और काटने को दौड़ती थी। यहाँ तक कि गली से गुजरने वाले कई बाहरी व्यक्तियों को तो वह घायल भी कर चुकी थी। इसीलिए उस गली से लोगों का गुजरना भी कम हो गया था।

एक दिन मैं सुबह ऑफिस पहुंचा तो देखा कि वह कुतिया ऑफिस के सामने खड़ी थी। ऑफिस के सामने वाली नाली को ऊपर से सीमेंट की शेल्फ बना कर कवर किया हुआ था और वह कुतिया वहीं ताक रही थी। मैंने गौर किया तो पाया कि उसके नीचे से उसके बच्चों की आवाजें आ रही थीं। मैं समझ गया कि इसके बच्चे उस कवर किए हुए हिस्से में चले गए थे और अब कीचड़ होने की वजह से निकल नहीं पा रहे थे।

मैंने ऑफिस के अपने एक सहायक को साथ लिया और उन बच्चों को बचाने में लग गया। कीचड़ ज्यादा होने की वजह से उन बच्चों को निकालना मुश्किल हो रहा था। हम उस कुतिया पर भी नज़र रखे हुए थे कि कहीं वह हमें काट न ले, परन्तु वह बिलकुल शांत हमें बच्चों को निकालते हुए देख रही थी। जब काफी देर तक बच्चे नहीं निकले तो हमने खूब सारा पानी डालना शुरू किया और कुछ कीचड़ कम होने पर पुन: डंडे से बच्चों को निकालना शुरू कर दिया। अब एक एक करके बच्चों का निकलना शुरू हो गया था। जैसे जैसे हम बच्चों को निकाल रहे थे, उनकी मां उन्हें वैसे वैसे ही एक एक करके सुरक्षित जगह पर पहुंचाती जा रही थी। काफी मशक्कत के बाद उसके सारे बच्चों को हम सही सलामत बाहर निकालने में सफल हो गए।

मैंने देखा कि जो कुतिया किसी को अपने आसपास भी फटकने नहीं देती थी, आज उसने हमें एक बार भी कुछ नहीं कहा था, बल्कि हमारी तरफ याचना भरी नज़रों से देख रही थी। अब उसकी आँखों में एक अनोखी चमक और हमारे लिए कृतज्ञता का भाव था। मैं सोच रहा था, “इंसान हो या जानवर, बच्चे सभी को एक समान ही प्यारे और अमूल्य होते हैं…।”

©  श्री विजय कुमार

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