श्री हरभगवान चावला

ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी का हार्दिक स्वागत।sअब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा ‘ख़ून के रिश्ते’।)

☆ लघुकथा – ख़ून के रिश्ते ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

आज पुश्तैनी मकान में अपना हिस्सा बँटाने शहर से तीनों भाई जुगल के घर आए थे। चाय पीते हुए तीनों भाई कह रहे थे कि मकान की क़ीमत लगवा ली जाए और उनके हिस्से के पैसे जुगल उन्हें दे दे। जुगल के पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसे वह दिन याद आ रहा था जब पिता लकवाग्रस्त होकर खाट से आ लगे थे। बड़ा भाई तब तक बैंक में अफ़सर हो चुका था, बाक़ी दोनों उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। जुगल तब दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था। तीनों ने जुगल की मिन्नत की थी कि वह पिता की सेवा करे, माँ का ख़याल रखे। तीनों में से किसी का वहाँ रुक पाना संभव नहीं है। बदले में वे पुश्तैनी ज़मीन और मकान में कोई हिस्सा नहीं लेंगे। पिता ने कपास के व्यापार में जो पैसा कमाया था, वह सारा पैसा उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे भाइयों को दे दिया गया। जुगल की पढ़ाई छूट गई। पिता चार साल के लगभग बिस्तर पर रहे। अपने आख़िरी  दिनों में तो वे मल मूत्र में लिथड़े रहते और जुगल चुपचाप उनकी सेवा में लगा रहता। उनकी मौत के दो साल बाद माँ भी चली गई। तब तक दूसरा भाई बिजली विभाग में इंजीनियर हो गया था, तीसरे का कारोबार शहर में बहुत अच्छा चल रहा था। माँ की तेरहवीं पर ही भाइयों ने ज़मीन बाँट ली। जुगल के पास एक एकड़ ज़मीन बची थी।

अब जुगल लोगों के घरों में गोबर उठाने तथा भैंसों का दूध निकालने का काम करके किसी तरह गुज़ारा कर रहा था… और आज भाई मकान में अपना हिस्सा बँटाने आए थे। चाय पी जा चुकी थी।

बड़े ने खँखारते हुए कहा, “तो भाई, बुला पंचायत को, मकान की क़ीमत लगवा लें।”

जुगल ने जवाब नहीं दिया। वह तेज़ी से एक तरफ़ मुड़ा और एक चारपाई उठाकर घर के बाहर रख दी, फिर बड़ा ट्रंक खींचने की कोशिश में लग गया। कामयाब नहीं हुआ तो बीवी से कहा, “ज़रा उधर से धक्का मार।” भाई हैरान खड़े समझने की कोशिश कर रहे थे कि हो क्या रहा है? ट्रंक दरवाज़े तक पहुँचने को था कि एक भाई ने पूछा, “ये क्या हो रहा है जुगल?”

“भाइयों का घर ख़ाली कर रहा हूँ। देने को मेरे पास पैसे नहीं हैं। आप लोग क़ीमत लगवा लो। बेचकर पैसा बाँट लेना। मुझे कोई हिस्सा नहीं चाहिए।”

“पर तुम लोग रहोगे कहाँ?” दूसरे भाई ने पूछा।

“तुम्हें चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं है। लाखों लोग आसमान की छत के नीचे रहते हैं, हम भी रह लेंगे।”

 

© हरभगवान चावला

सम्पर्क –  406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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