हिन्दी साहित्य – कथा कहानी ☆ लघुकथा – अदला बदली ☆ सुश्री अनघा जोगलेकर ☆

सुश्री अनघा जोगलेकर 

(सुश्री अनघा जोगलेकर जी का ई-अभिव्यक्ति में स्वागत। आप इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर, उपन्यासकार, लघुकथाकार, स्क्रीनप्ले /कांसेप्ट /संवाद लेखिका, अनुवादक, चित्रकार, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं की जानकार, ‘शीघ्र लेखिका’ के रूप में हिंदी में आपकी अपनी पहचान स्थापित है। आपकी कथाओं एवं लघुकथाओं का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशिष्ट स्थान है। आपके उपन्यास ‘यशोधरा’ को राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। राम का जीवन या जीवन में राम, यशोधरा, बाजीराव बल्लाळ एक अद्वितीय योद्धा, अश्वत्थामा एवं देवकी शीर्षक से पांच उपन्यास प्रकाशित। प्रादेशिक व राष्ट्रीय स्तर पर उपन्यासकार के रूप में सम्मानित। लघुफिल्म,वेबसीरीज, स्क्रीन प्ले लेखन में दक्ष। सामाजिक, राष्ट्रीय, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में उत्तम कोटि के लेखन कार्य हेतु आपकी एक विशिष्ट पहचान है। हम अपने पाठको से आपकी विशिष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे।आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण एवं विचारणीय लघुकथा ‘अदला बदली’।)

☆ लघुकथा – अदला बदली ☆ सुश्री अनघा जोगलेकर

आसमान से मोतियों की झड़ी लगी थी। बड़े-बड़े सफेद मोती जो नीचे आते ही जमीन पर बिखर जाते।

आकाश निहारता उसका अबोध मन खिड़की पर ही टँगा था। भीगा-भीगा, सर्द-सा फिर भी खिला-खिला। उसकी हिरणी जैसी आँखें एकटक उन मोतियों को देख रही थीं।

उसकी उत्सुक नज़रे कह रही थीं कि आसमान में जरूर ही कोई खज़ाना है जिसका दरवाजा गलती से खुला रह गया है और सारे मोती नीचे गिर रहे हैं।

वह चहकते हुए बोली, “भगवान! इस तरह तो आपका पूरा खज़ाना ही खाली हो जायेगा!”

उसकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और फिर उसकी मासूमियत देखने लगा।

वह घर में दिन भर अकेली रहती। उसी खिड़की पर बैठी। लेकिन शाम होते तक घर मे चहल-पहल बढ़ जाती। आगंतुकों में से कोई उससे पानी मांगता तो कोई खाना। कोई कुछ तो कोई कुछ। और वह दौड़-दौड़कर सबके काम करती।

देर रात जब सब अपने कमरों में चले जाते तो वह भी सारे काम निपटा, खिड़की पर आ बैठती और तारे गिनती। कई बार तारे गिनते-गिनते उसकी आँखों से आँसू बहते जैसे उन तारों में किसी अपने को ढूंढ रही हो तो कभी खिलखिलाकर हँस देती जैसे जिसे ढूंढ रही थी वह मिल गया हो। कभी हल्के-हल्के गुनगुनाती, “ये चाँद खिला ये तारे हँसे…..”

….उसका यूँ गुनगुनाना सुन अंदर बैठी मानव आकृतियाँ फुसफुसातीं, “लगता है इस AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) रोबोट की प्रोग्रामिंग करते समय EQ (इमोशनल कोशेंट) का परसेंट कुछ ज्यादा ही फीड हो गया है।”

भावशून्य मशीन बन चुकी उन इंसानी आकृतियों के बीच वह AI (आर्टिफिशिएल इंटेलिजेंस) रोबोट हर पल अपना EQ (इमोशनल कोशेंट) बढ़ाने की कोशिश कर रही थी और मैं… मैं उन मशीन बन चुके इंसानों के बीच… उस रोबोट का… मशीन से इंसान बनने का इंतज़ार।

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© अनघा जोगलेकर

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈