श्री विजय कुमार
(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी की एक विचारणीय लघुकथा “अपने लिए“।)
☆ लघुकथा – अपने लिए ☆ श्री विजय कुमार, सह सम्पादक (शुभ तारिका) ☆
किसी बड़ी कारपोरेट कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों की तरह वर्दीनुमा कपड़े पहने कुछ सुंदर नौजवान युवक-युवतियों ने कार्यालय-कक्ष में प्रवेश किया और एक-एक कर अपनी कंपनी की तरफ से दिए गए उत्पाद सभी को दिखाने लगे। सभी को कंपनी-संचालक द्वारा एक बंधे-बंधाये प्रबंधन कोर्स की तरह प्रशिक्षित किया गया था और वह एक रट्टू तोते की तरह बोलकर अपने उत्पादों की अच्छाइयां और उनके अनूठे उपयोगों के बारे में बता रहे थे। साथ ही, एक के साथ एक मुफ्त या एक के दाम में दो का भी प्रलोभन दे रहे थे, जैसा कि ग्राहकों को लुभाने, या सरल शब्दों में कहें तो फंसाने का एक कारगर उपाय होता है। कुछ साथी कर्मचारी इस अंत में दिए गए मारक जाल में आ गए थे, और अपनी आवश्यकताओं या पसंद के अनुसार कुछ ना कुछ खरीद रहे थे। किसी-किसी ने वर्तमान की बेरोजगारी को ध्यान में रखते हुए भी उन नवयुवक और नवयुवतियों के प्रति अपना नैतिक कर्तव्य निभाते हुए कुछ उत्पाद लिए, तो एक-दो का उनके प्रति आकर्षण भी कारण रहा होगा।
अब जब वह मेरे सामने खड़े रटे-रटाए वाक्य बोलने को हुए तो मैंने उन्हें हाथ के इशारे से रोक दिया, “एक बात बताओ, तुम्हें इस काम के कितने पैसे मिलते हैं?” वह एक-दूसरे को देखने लगे। मैंने कहा, “छोड़ो, जितने भी मिलते होंगे, पर इतने नहीं कि जिन्हें तुम्हारी दिनभर की दौड़-धूप के अनुसार संतोषजनक या ज्यादा कहा जा सके, क्यों?”
वह चुपचाप खड़े थे जिससे मुझे यह अंदाजा हो गया था कि मैं काफी हद तक सही हूं।
मैंने फिर कहा, “यह तो तुम लोग भी जानते हो कि यह सारे प्रोडक्ट, जो तुम लोग बेच रहे हो, वह उत्तम गुणवत्ता वाले या नामी कंपनियों के नहीं हैं। इनमें बहुत मार्जिन होता है। तुम लोगों को थोड़ा सा लाभ देकर ज्यादातर लाभ कंपनी या एजेंसी के पास चला जाता है, जबकि तुम इन्हें बेचने के लिए अपना पूरा पसीना बहा देते हो। तो क्यों नहीं तुम लोग अपना स्वयं का कोई काम शुरू करके उसमें अपना श्रम और शक्ति लगाते। कम से कम किसी मुकाम तक तो पहुंचोगे, और तुम्हें तुम्हारी मेहनत का पूरा फल भी मिलेगा। तुम्हें किसी के अधीन रहकर नहीं, बल्कि आजादी से काम करने को मिलेगा और तुम दूसरों के लिए नहीं बल्कि अपने लिए काम करोगे, अपने लिए…।”
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© श्री विजय कुमार
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