श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – सीख ।)
☆ लघुकथा – सीख ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
मुन्ना जब बहुत छोटा था, माँ को हमेशा लगता कि कहीं वह भूखा न रह जाए। वह उसकी अनिच्छा के बावजूद उसे बार-बार दूध पिलाती रहती। मुन्ना बड़ा हो गया, उसकी भूख भी बड़ी हो गई, पर घर ग़रीब बना रहा। पति ने पत्नी से कहा,”हमें मुन्ना को भूखा रहना सिखाना होगा। तुमने बचपन में उसे ज़रूरत से ज़्यादा दूध पिलाया जिससे उसकी भूख बढ़ गई।”
“उसकी भूख की चिन्ता तुम्हें मुझसे ज़्यादा थी, मुझे इल्ज़ाम मत दो।”
“चलो छोड़ो पिछली बातें। आज की परिस्थिति में उसकी भूख हमारी ही नहीं, उसकी भी चिंता का कारण होनी चाहिए। रोज़गार कहीं है नहीं। कहीं दिहाड़ी करेगा तो दिहाड़ी के पैसे से उसका पेट नहीं भरेगा। और हम हमेशा उसके साथ तो नहीं रहेंगे। उसको भूखा रहना सीखना होगा।”
“पर यह होगा कैसे? उसका पेट ज़रा सा कम भरा हो तो उसके भीतर भूख की चिंगारी सुलगती रहती है, इस चिंगारी को बुझाने के लिए उसे आख़िरी कौर तक खाना पड़ता है।”
“हमें उसे बस यही सिखाना है कि तीसरा, चौथा या पहला, दूसरा कौर भी आख़िरी कौर हो सकता है।”
संवाद सम्पन्न हो गया था, पति पत्नी दोनों एक दूसरे की तरफ पीठ किए शून्य में पता नहीं बहुत देर तक क्या देखते रहे।
(विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास ‘खिलेगा तो देखेंगे’ के एक प्रसंग से प्रेरित)
© हरभगवान चावला