श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है।
अस्सी-नब्बे के दशक तक जन्मी पीढ़ी दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां सुन कर बड़ी हुई हैं। इसके बाद की पीढ़ी में भी कुछ सौभाग्यशाली हैं जिन्हें उन कहानियों को बचपन से सुनने का अवसर मिला है। वास्तव में वे कहानियां हमें और हमारी पीढ़ियों को विरासत में मिली हैं। आशीष का कथा संसार ऐसी ही कहानियों का संग्रह है। उनके ही शब्दों में – “कुछ कहानियां मेरी अपनी रचनाएं है एवम कुछ वो है जिन्हें मैं अपने बड़ों से बचपन से सुनता आया हूं और उन्हें अपने शब्दो मे लिखा (अर्थात उनका मूल रचियता मैं नहीं हूँ।”)
☆ कथा कहानी ☆ आशीष का कथा संसार #109 एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा ☆ श्री आशीष कुमार☆
मैं बिस्तर पर से उठा,अचानक छाती में दर्द होने लगा मुझे… हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों के साथ. ..मैं आगे वाले बैठक के कमरे में गया…मैंने नज़र की…कि मेरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था…
मैंने … पत्नी को देखकर कहा…काव्या थोड़ा छाती में रोज से आज ज़्यादा दु:ख रहा है…डाक्टर को बताकर आता हूँ . ..
हां, मगर संभलकर जाना…काम हो तो फोन करना मोबाइल में देखते देखते ही काव्या बोली…
मैं… एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुँचा … पसीना,मुझे बहुत आ रहा था…एक्टिवा स्टार्ट नहीं हो रहा था…
ऐसे वक्त्त… हमारे घर का काम करने वाला ध्रुव सायकल लेकर आया… सायकल को ताला मारते ही उसे मैंने मेरे सामने खड़ा देखा…
क्यों साब? एक्टिवा चालू नहीं हो रहा है…मैंने कहा नहीं…
आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साब… इतना पसीना क्यों आया है ?
साब… स्कूटर को किक इस हालत में नहीं मारते….मैं किक मारके चालू कर देता हूँ …ध्रुव ने एक ही किक मारकर एक्टिवा चालू कर दिया, साथ ही पूछा..साब अकेले जा रहे हो
मैंने कहा… हां
ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते…चलिए मेरे पीछे बैठ जाइए…मैंने कहा तुम्हें एक्टिवा चलाना आता है? साब… गाड़ी का भी लाइसेंस है, चिंता छोड़कर बैठ जाओ…
पास ही एक अस्पताल में हम पहुँचे, ध्रुव दौड़कर अंदर गया, और व्हील चेयर लेकर बाहर आया…
साब… अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ..
ध्रुव के मोबाइल पर लगातार घंटियां बजती रही…मैं समझ गया था… फ्लैट में से सबके फोन आते होंगे..कि अब तक क्यों नहीं आया? ध्रुव ने आखिर थक कर किसी को कह दिया कि… आज नहीँ आ सकता….
ध्रुव डाक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था…उसे बगैर पूछे मालूम हो गया था कि, साब को हार्ट की तकलीफ हो रही है… लिफ्ट में से व्हील चेयर ICU कि तरफ लेकर गया….
डाक्टरों की टीम तो तैयार ही थी… मेरी तकलीफ सुनकर… सब टेस्ट शीघ्र ही किये… डाक्टर ने कहा, आप समय पर पहुँच गए हो….इस में भी आपने व्हील चेयर का उपयोग किया…वह आपके लिए बहुत फायदेमंद रहा…
अब… कोई भी प्रकार की राह देखना… वह आपके लिए हानिकारक होगी…इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आपके ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे…इस फार्म पर आप के स्वजन के हस्ताक्षर की ज़रूरत है…डाक्टर ने ध्रुव को सामने देखा…
मैंने कहा, बेटे, दस्तखत करने आते है? साब इतनी बड़ी जवाबदारी मुझ पर न रखो…
बेटे… तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं है… तुम्हारे साथ भले ही लहू का संबंध नहीं है… फिर भी बगैर कहे तुमने तुम्हारी जवाबदारी पूरी की, वह जवाबदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी…एक और जवाबदारी पूरी कर दो बेटा, मैं नीचे लिखकर सही करके लिख दूंगा कि मुझे कुछ भी होगा तो जवाबदारी मेरी है, ध्रुव ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर किये हैं, बस अब. ..
और हां, घर फोन लगा कर खबर कर दो…
बस, उसी समय मेरे सामने, मेरी पत्नी काव्या का मोबाइल ध्रुव के मोबाइल पर आया. वह शांति से काव्या को सुनने लगा…
थोड़ी देर के बाद ध्रुव बोला, मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काटना, निकालने का हो तो निकाल दो, मगर अभी अस्पताल ऑपरेशन शुरु होने के पहले पहुँच जाओ। हां मैडम, मैं साब को अस्पताल लेकर आया हूँ। डाक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है, और राह देखने की कोई जरूरत नहीं है…
मैंने कहा, बेटा घर से फोन था…?
हाँ साब.
मैंने मन में सोचा, काव्या तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही है, और किस को निकालने की बात कर रही हो? आँखों में आंसू के साथ ध्रुव के कंधे पर हाथ रख कर, मैं बोला, बेटा चिंता नहीं करते।।
मैं एक संस्था में सेवाएं देता हूं, वे बुज़ुर्ग लोगों को सहारा देते हैं, वहां तुम जैसे ही व्यक्तियों की ज़रूरत है।
तुम्हारा काम बरतन कपड़े धोने का नहीं है, तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है… बेटा… पगार मिलेगा, इसलिए चिंता ना करना।
ऑपरेशन बाद, मैं होश में आया… मेरे सामने मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था, मैं आँखों में आंसू के साथ बोला, ध्रुव कहाँ है?
काव्या बोली-: वो अभी ही छुट्टी लेकर गांव गया, कहता था, उसके पिताजी हार्ट अटैक में गुज़र गऐ है… 15 दिन के बाद फिर से आयेगा।
अब मुझे समझ में आया कि उसको मेरे में उसका बाप दिखता होगा…
हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया!
पूरा परिवार हाथ जोड़कर, मूक नतमस्तक माफी मांग रहा था…
एक मोबाइल की लत (व्यसन)…अपने व्यक्ति को अपने दिल से कितना दूर लेकर जाता है… वह परिवार देख रहा था….यही नहीं मोबाइल आज घर घर कलह का कारण भी बन गया है
डाक्टर ने आकर कहा, सब से पहले यह बताइए ध्रुव भाई आप के क्या लगते?
मैंने कहा डाक्टर साहब, कुछ संबंधों के नाम या गहराई तक न जाएं तो ही बेहतर होगा उससे संबंध की गरिमा बनी रहेगी।
बस मैं इतना ही कहूंगा कि, वो आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था!
पिन्टू बोला :- हमको माफ करो पप्पा… जो फर्ज़ हमारा था, वह ध्रुव ने पूरा किया, वह हमारे लिए शर्मजनक है, अब से ऐसी भूल भविष्य में कभी भी नहीं होगी. ..
बेटा, जवाबदारी और नसीहत (सलाह) लोगों को देने के लिए ही होती है…
जब लेने की घड़ी आये, तब लोग ऊपर नीचे (या बग़ल झाकते है) हो जातें है।
अब रही मोबाइल की बात…
बेटे, एक निर्जीव खिलोने ने, जीवित खिलोने को गुलाम कर दिया है, समय आ गया है, कि उसका मर्यादित उपयोग करना है।
नहीं तो…. परिवार, समाज और राष्ट्र को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना पड़ेगा।
बेटे और बेटियों को बड़ा अधिकारी या व्यापारी बंनाने की जगह एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा।
© आशीष कुमार
नई दिल्ली
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈