श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर विचारणीय लघुकथा – नदी।)

☆ लघुकथा – नदी ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

नदी थी। नदी के इस तरफ़ एक बस्ती थी, दूसरी तरफ़ भी एक बस्ती थी। नदी पर पुल था। दोनों बस्तियों के लोग इस पुल पर से होकर दूसरी बस्ती में आया-जाया करते। इन आने-जाने वालों में इस बस्ती की एक लड़की और उस बस्ती का एक लड़का भी था। कभी-कभी वे दूर से दौड़ते हुए आते और पुल के ठीक बीचोंबीच ऐसे लिपट जाते जैसे दोनों एक ही हों। इस बस्ती के कुछ लोग उस बस्ती के लोगों को असभ्य तथा जंगली कहते। उस बस्ती के कुछ लोग इस बस्ती के लोगों को पाखंडी कहते। ये लोग प्यार के दुश्मन थे तथा हमेशा दूसरी बस्ती को नष्ट करने की योजनाएंँ बनाते रहते। पुल के पास कभी-कभी इन लोगों के हुजूम देखे जाते, ये लोग ध्वजाएँ लहराते, साज़िशी ठहाके लगाते, आग उगलते भाषण देते। आख़िर एक दिन पुल पर कोहराम हुआ। पुल लाशों से भर गया। लाशें हटीं तो पुल तोड़ दिया गया।

अब नदी थी, पुल नहीं था। नदी के दोनों ओर पुलिस तैनात रहती। सुबह होते ही लड़की नदी के इस पार आ खड़ी होती, लड़का उस पार आ खड़ा होता। दोनों एक दूसरे को देखते रहते और चिल्लाते रहते। सूरज डूब जाता तो लौट जाते। पुलिस उनके इस तरह चिल्लाने से तंग आ गई, प्यार के दुश्मन तो उनके दुश्मन थे ही। फिर एक दिन दोनों अपनी जगहों पर दिखाई नहीं दिए। किसी को हैरानी नहीं हुई। सब जानते थे कि वे किसी दिन दिखाई देना बंद हो जायेंगे। उस दिन के बाद नदी का पानी मटमैला हो गया। हमेशा से शांत बहती नदी हर समय फुफकारती रहती। नदी में बड़े-बड़े पत्थर लुढ़कते नज़र आते। अब नदी, नदी जैसी नहीं, सर्वग्रासी दीर्घकाय पिशाचिनी जैसी दिखती थी।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Kiran Shanker Raghubanshi

Sahi chitran aaj ke parivesh ka. Kya hamne aese Duniya ki kalpana ki thi? Bahut hi sunder v yatharth per.