श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – लाचारी।)

☆ लघुकथा – लाचारी श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

क्या हो गया जी आप उस काले कोट वाले को देखकर क्यों घबरा रहे हो?

कुछ नहीं भाग्यवान बस तुम चुप रहना अपना मुंह मत खोलना वह टिकट देखने के लिए इस ट्रेन का टीसी बाबू है।

तभी उसने कहा अंकल जी आप अपना टिकट दिखाइए और आप यहां गेट का पास क्यों बैठे हैं?

बेटा यह टिकट है। बेटे के अपने दोस्त से कहा उसने टिकट हमें दे दिया, ट्रेन छूट रही थी सभी डिब्बों में भीड़ थी ये डिब्बा खाली देखा इसलिए हम यहां पर चढ़ गए और यहां दरवाजे के पास चादर बिछा कर बैठ गए, हमारे पैरों में बहुत दर्द रहता है।

अंकल जी यह टिकट तो स्लीपर क्लास का है यह एसी सेकंड क्लास का डिब्बा है अगले स्टेशन में आप उतरकर उस डिब्बे में बैठ जायेगा। ट्रेन रात के 2:00 बजे पहुंचेगी तब तक आप लोगों को तकलीफ होगी। अभी आप मेरी सीट पर बैठ जाइए।

धन्यवाद बेटा पर हम वहां पर कैसे बैठे जाकर हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है हम पहली बार रेल यात्रा कर रहे हैं।

कोई बात नहीं अंकल जी मैं आपको चलकर बैठा दूंगा।

दूसरा स्टेशन आते ही टीसी बसंत कुमार ने बुजुर्ग दंपति को उनकी सीट पर बैठा दिया और वह बोला – माताजी आपका स्टेशन किशनगढ़ रात में आएगा?

बगल में बैठे यात्री से कहा किशनगढ़ आने पर इन्हें बता देना।

उसने एक कागज पर अपना फोन नंबर लिख कर दिया और बोला यदि आपको अंकल कोई तकलीफ होगी तो मुझे इस नंबर पर फोन कर देना अब मैं चलता हूं।

तभी उस बुजुर्ग महिला कमला ने कहा कि बेटा तुमने हमारी इतनी मदद की है तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद मैं घर से पूरी सब्जी बनाकर लाई हूं थोड़ा सा खाना खा लो और उसे अपने साथ खाना खिलाया ।

बसंत को भी रात भर यह चिंता लगी रहती थी कि बेचारे कैसे अपने बेटे के पास पहुंचेंगे कैसे बच्चे हैं मां-बाप को अकेले आने को बोल देते हैं कैसे बच्चे हैं?

 स्टेशन पर जब गाड़ी रूकी तो वह बुजुर्ग दंपति को रात के 2:00 बजे ढूंढने लगा ।

फिर विचार करने लगा मुझे क्या करना है ?

जब उसके बेटे को चिंता नहीं है लेकिन फिर सोच इंसानियत नाम की तो कोई चीज होती है उसने देखा वह बेचारे अकेले दूर बैठे थे।

अंकल जी कैसे हैं आप उतर गए आपको कोई लेने नहीं आया।

नहीं बेटा कोई नहीं आया थोड़ा सबेरा हो तब कोई गाड़ी पकड़ कर हम जाएं।

आप पता मुझे दिखाइए और वह पता लेकर एक ऑटो वाले के पास जाता है और उन्हें कहता लिए इसमें बैठ जाइए मैं आपको छोड़ देता हूं।

बेटा तुम हमारी इतनी मदद क्यों कर रहे हो हमारे कारण तुम परेशान होंगे कोई बात नहीं अंकल मैं उसी तरफ रहता हूं मेरा घर है। रास्ते में एक जगह उतरना है और बोलना अंकल जी मेरा घर है यदि कोई दिक्कत होगी तो आप आ जाना और ऑटो वाले को कहकर आगे के चौराहे के पास छोड़ देना वही घर है।

वह घर में आराम से सो रहा था तभी अचानक दरवाजा जोर-जोर से खटखट की आवाज हुई।

क्या बात हुई? कौन खटखटा रहा है?

वह उसे बुजुर्ग दंपति को सामान के साथ देखकर दंग रह जाता है क्या वह अंकल जी बेटे का घर नहीं मिला क्या?

लेकिन उसकी शादी हो रही है इसीलिए उसने बुलाया था ?

बहुत सारे अच्छे लोग सूट बूट पहने थे हमें इस हालत में देखकर उसने पहचानने से इंकार किया और चौकीदार से कहकर हमें घर से बाहर निकाल दिया।

बिचारी बुजुर्ग महिला बहुत रोने लगी और वह बोली बेटा हमारे पास तो पैसे भी नहीं है अब हम अपने गांव कैसे पहुंचे अपने बेटा के लिए यह घी और थोड़ा सा चावल लेकर आए थे अब तुम यह ले लो बस हमारी टिकट कर दो जिससे हम गांव तक पहुंच सके। तुम्हें रात से  तकलीफ दे रहे हैं पर क्या करें कुछ दिमाग हमारा काम ही नहीं कर रहा है दोनों कांप रहे थे और रोए जा रहे थे। तभी उसकी पत्नी ने आवाज दिया क्या हो गया कुछ नहीं गांव से चाचा जी आए काम से आए, बस रात में सोएंगे सुबह चले जाएंगे।

उसने उन्हें एक कमरे में ले जाकर कहा आप यहां आराम से रहिए सुबह हम चलेंगे। और उन्हें चाय बना कर दिया साथ में ब्रेड भी दिया अब उनकी आंखों में एक उत्साह दिख रहा था। बुजुर्ग महिला कामना ने कहा बेटा तुम तो देवदूत हो इस जन्म में नहीं लेकिन अगले जन्म में भगवान तुम जैसा ही बेटा हमें दे लोग तो दूसरों से धोखा खाकर सावधान रहते हैं जब अपने ही धोखा दे तो कैसा लगता है आज तो हमारे शरीर में काटो तो खून नहीं। तुमने कृष्ण भगवान की तरह हमें इस संकट से उबारा है।

कोई बात नहीं माताजी आप परेशान न होइए मेरे मां-बाप भी बुजुर्ग हैं और गांव में ही रहते हैं मैं समझ सकता हूं आपकी मनोस्थिति…।

मुझे पता है मैंने बहुत अभाव में पढ़ाई की है और आज इस पद पर पहुंचा हूं। परीक्षा के लिए मैं भी इधर-उधर भटकता था लाचारी क्या चीज है मुझे पता है…।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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