सुश्री सुनीता गद्रे
☆ कथा कहानी ☆ महाकवि गुणाढ्य और उसकी बड्डकहा (बृहत्कथा) – भाग १ ☆ सुश्री सुनीता गद्रे ☆
लगभग ईसा पूर्व 200 या 300 साल का कालखंड उस समय विंध्य पर्वत के दक्षिण में… मतलब आज का गुजरात, दक्षिण मध्य प्रदेश, उत्तर महाराष्ट्र का हिस्सा… वहाॅं सातवाहन वंश के राजाओं का राज्य था। उसमें से एक सातवाहन राजा के कालावधी में घटी हुई यह कहानी! प्रतिष्ठान (पैठण) प्रदेश में एक छोटा सा गाॅंव था, नाम सुप्रतिष्ठित !वहाॅं सोमनाथ शर्मा नाम के एक विद्वान पंडित रहते थे। उनका पोता गुणाढ्य! बचपन से ही वह बहुत बुद्धिमान था। दक्षिणापथ से विद्या ,ज्ञान अर्जित कर कर वह अपने गाॅंव वापस आया। इस प्रतिभावंत, विद्वान युवक को सातवाहन नरेश ने अपने राज्य का मंत्री पद बहाल किया।
एक दिन की बात! सातवाहन राजा अपने रानियों के साथ राजमहल के पास बने हुए जलाशय में जलक्रीड़ा का आनंद ले रहा था। उसकी एक रानी राजा ने किए हुए पानी के वर्षाव से परेशान हो गई थी। वह अचानक बोल पड़ी “मोदकैस्ताडय।” इस संस्कृत वाक्य का जो अर्थ राजा के समझ में आया वह था मुझे मोदकों से मारना। उसने तत्काल सेविकाओं से बहुत सारे मोदक(लड्डू) मंगवाऍं। यह देखकर रानी जोर से हॅंस पड़ी और कहने लगी,” राजन् यहाॅं जल क्रीडा में मोदकों का क्या काम ?मैंने तो आपसे कहा था,”मा उदकै: ताडय!” मतलब मुझ पर पानी मत उड़ाईए। आपको तो संस्कृत व्याकरण के संधि के नियम भी मालूम नहीं है।और तो और… आप परिस्थिति का संदर्भ समझकर मेरे वाक्य का अर्थ भी समझ नहीं सके।”वह रानी संस्कृत की बहुत बड़ी विदुषी थी। उसकी बातें सुनकर दूसरी रानियाॅं हॅंसने लगी। राजा बहुत शर्मिंदा हो गया। पानी से चुपचाप बाहर निकल कर वह अपने महल में चला गया।
यह बात उसके दिल को शुल की तरह चुभने लगी। वह एकदम मौनसा हो गया। उसने यहाॅं तक सोचा कि अगर संस्कृत भाषा पर वह प्रभुत्व हासिल नहीं कर सका, तो वह प्राण त्याग करेगा।उसने राज दरबार में जाना भी छोड़ दिया।
राजा आजकल उदास रहता है, दरबार में भी नहीं जाता। ये बातें गुणाढ्य को मालूम थी। लेकिन उसकी वजह मालूम नहीं थी। राज दरबार में शर्ववर्मा नाम का एक मंत्री भी था, शर्ववर्मा और गुणाढ्य दोनों मिलकर सही समय देखकर राजा से मिलने गए ।राजा का उदास चेहरा देखकर शर्ववर्मा उसको भोर के समय देखे गए अपने सपने के बारे में बताने लगा ।उसके सपने में आसमान से पृथ्वी पर उतर आया हुआ कमल… उसके पंखुड़ियों को स्पर्श करने वाला देव कुमार… फिर कमल में से प्रकट हो गई हुई सरस्वती माता… वहां से राजा के मुख में प्रवेश करके वही वास्तव्य करने वाली वह माता…. इस तरह की बहुत मनगढ़ंत बातें थी। राजा ने उस पर यकीन भी नहीं किया, लेकिन मौन छोड़कर वह बोलने लगा,
“इतने बड़े राज्य का में नरेश हूॅं। मेरे पास अपार धन संपत्ति है।लेकिन विद्या-सरस्वती- के बिना लक्ष्मी शोभा नहीं देती।” फिर गुणाढ्य की ओर मुखातिब होकर राजा ने पूछा, “कोई एक व्यक्ति जो पूरा परिश्रम करने को तैयार हो, वह व्याकरण सहित संस्कृत कितने दिन में आत्मसात कर सकता है।” गुणाढ्य ने कहा, “राजन् व्याकरण भाषा का आईना होता है और कोई नियमित रूप से पढ़ाई करने को तैयार हो ,तो भी व्याकरण सीखने में बारा साल लग जाते हैं,लेकिन मैं आपको छह साल में व्याकरण सिखाऊॅंगा।” गुणाढ्य को राजा के मन में संस्कृत अध्ययन करने की तीव्र इच्छा की वजह मालूम नहीं थी।वह इस बात का भी अंदाजा नहीं लगा पाया कि राजा को महा पंडित नहीं बनना है।उसको तो रोजमर्रा की जीवन में उपयुक्त हो इतनी ही संस्कृत पढ़नी है।शर्ववर्मा के मन में वैसे भी गुणाढ्य के प्रति द्वेष था। जलक्रीडा और उसमें हो गया राजा का अपमान इसके बारे में उसको पूरी जानकारी थी।
उस पर यह एक अच्छा मौका उसके हाथ लगा था। उसने बड़े आत्मविश्वास से कहा,”महाराज मैं आपको छह महीने में व्याकरण सहित संस्कृत पढ़ा सकता हूॅं।
गुणाढ्य को यह बात असंभव लगी। उसने भी बड़े आत्मविश्वास के साथ शर्त लगाई,…. अगर शर्ववर्मा आपको सचमुच ही छह महीने में व्याकरण सहित संस्कृत सिखा देगा, तो मैं संस्कृत, पाली, प्राकृत ये तीनों भाषाऍं छोड़ दूॅंगा।” जवाब में शर्ववर्मा
ने कहा,” अगर मैं इस में सफल नहीं हो पाया, तो आगे बारह साल तक मैं आपके ,मतलब गुणाढ्य के, पादूकाओं को सर पर धारण करूॅंगा।
क्रमशः…
© सुश्री सुनीता गद्रे
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