श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – जीवन की चक्की।)

☆ लघुकथा # 39 – जीवन की चक्की श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

विद्या बहुत ही चंचल और खुशमिजाज लड़की थी छोटी सी उम्र में ही उसकी शादी हो गई थी उसने बस 12वीं तक की ही पढ़ाई की थी सास ससुर की सेवा करना बच्चे और पति का ध्यान देना।

बस उसकी यही दुनिया थी।

कल अचानक उसके भाई भाभी का फोन आया ।

सावन में तो दीदी घर आ जाओ । (पति) अशोक ने मना कर दिया, कहाॅं जाओगी? तुम्हारा घर एक तो गली में है और कोई जाओ तो ध्यान ही नहीं देता?

विद्या ने रोते हुए कहा – मेरी माॅं भाभी तो इसी शहर में रहती है, एक घंटे को भी नहीं जा सकती?

अशोक ने कहा जाओ बच्चों को मत ले जाना शाम को जल्दी घर आ जाना देर बिलकुल मत करना।

अपने मायके में भाभी की इज्जत देखकर उसे लगा की भाभी बैंक में नौकरी करती हैं इसीलिए मां और भाई मान और इज्जत देते …।

नौकर भी है उसे एक काम नहीं करना पड़ता।

काश! मैंने पढ़ाई कर ली होती और मैं नौकरी करती तो आज मेरे घर में भी मेरी इज्जत होती। बार-बार मुझे अपमानित नहीं होना पड़ता, न ही सबके ताने सुनने पड़ते कि –  तुम रसोई के लिए बनी हो।

मन में विचार ही कर रही थी विद्या तभी भाभी आ गई।

अरे! दीदी आज आप आ रहे हो इसलिए मैंन ऑफिस से जल्दी छुट्टी लेकर आ गई।

मैं आपके और जीजा जी के लिए कपड़े भी लाई हूं अब दो-तीन दिन आप रूकना और आज शाम को जीजा जी को बुला लो। वह अभी ऑफिस में होंगे इसलिए मैंने फोन नहीं किया बच्चे भी आप यहीं पर बुला लो उनके अकाउंट में मैं पैसे डाल दूंगी कपड़े खरीदने के लिए वह अपने मन से खरीदारी कर लेंगे।

क्या आपका मन अपने लिए कुछ नहीं होता? चलो! मैं आपको तैयार करती हूं और मैं आपका कुछ नहीं सुनुंगी।

आपको खाना खाकर ही जाना पड़ेगा ऐसा नहीं चलेगा।

आप तो एकदम ईद के चांद की तरह कभी-कभी तो आती हैं? कुछ दिन आराम से रहो?

हां भाभी आना तो मैं भी चाहती हूं लेकिन काम की व्यस्तता के कारण बच्चों की पढ़ाई के कारण मेरा आना नहीं हो पता है। नहीं तो जिसकी आप जैसी भाभी हो वहां कौन नहीं आना चाहेगा?

जीवन की चक्की में पिस रही हूँ।

****

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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