श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता – युद्ध के बाद )
☆ कविता – युद्ध के बाद ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
वे अजनबी ज़मीन पर मर गये
उनके मज़बूत जिस्म तेज़ धूप में
भाप बनकर उड़ गये
उनकी हड्डियाँ जब ज़मींदोज़ होने के लिए
सैलाबों और तूफ़ानों का इंतज़ार करती थीं
कितने ही गाँवों में
माँओं और विधवाओं के विलाप गूँजते थे
खेतों में तबाह हो गई थीं फ़सलें
जानवर मर गए थे, मर रहे थे
औरतों और भैंसों के दूध सूख गए थे
पागलों की तरह गलियों में भटक रहे थे
कर्ज़ में डूबे किसानों के अस्थिपंजर
जब राजधानी में निरंतर
चल रहे थे जीत के जश्न
आसमान आतिशबाज़ियों से बौराया हुआ था
दुश्मन का नामो-निशान मिटा देने की
अहंकारपूर्ण प्रतिज्ञाएँ ली जा रही थीं
ठीक उसी समय अनगिनत लड़कियाँ
अपने गुमशुदा महबूब को याद कर
युद्ध और युद्ध-पिपासुओं को कोस रही थीं।
© हरभगवान चावला
सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा, सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈