श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – मानवता।)

☆ लघुकथा # 56 – मानवता श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’        

“भैया अम्मा की तबियत ठीक नहीं है आप भाभी और बच्चों को लेकर आ जाइए।”

शांति ने अपने बड़े भाई को फोन किया।

बड़े भाई  अरुण की  आंखें भर आयीं थी और वह अपनी छोटी बहन से कह रहा था कि 4 साल से मां बिस्तर में हैं और तू अपना घर परिवार देखते हुए कैसे सेवा कर रही है?

अपनी माँ को अकेले में छोड़कर तुम्हारी भाभी से डर कर के घर में शांति बनी रहे अपने बच्चों को देख रहा था लेकिन तूने हर कर्तव्य का निर्वाह किया।

सुबह शाम मां को खाना बनाकर अपने हाथ से उनको खाना खिलाना। उनके बिस्तर को ठीक करना, गन्दे कपड़े धोना आदि  सभी काम वह स्वयं ही करती है इतनी हिम्मत कहां से आई जीजाजी और बच्चों को भी तो तू ही संभालती है।

शांति ने मुस्कुरा कर कहा भैया “अरे कुछ नहीं , आप तो बेकार ही परेशान हो जाते हैं,  आप ही आ जाते तो कम से कम अम्मा आपको ही देख लेतीं उनकी तबियत बहुत खराब है।”

बड़ी दीदी भी आई है मां दरवाजे की तरफ अपनी उदास नजरों से देखती है कुछ कह नहीं पाती। आप हम दोनों बहनों के बीच में अकेले भाई हो। आप ही का इंतजार कर रही है अब जल्दी से आ जाओ भैया।

इतने में अंदर से कुछ आवाज आती है और शांति – भैया अब मैं फोन रख रही हूं।

हाथ का पानी का गिलास छूटकर नीचे जा गिरा।

उसकी मां अब इस दुनिया से जा चुकी थी बड़ी बहन कमला ने आवाज दी। वह भी हड़बड़ा कर मां के कमरे में पहुंची।

क्या हुआ कहते हुए जब उसने मां को छुआ तो वह भी सन्न रह गई।

वे तो अनन्त यात्रा पर निकल चुकी थीं।

सभी को फोन कर के बुलाया गया। कुछ ने थोड़ा सच में तो कुछ ने नाटक में आंसू भी गिराये, दुख  प्रकट किया।

बड़े बेटे के साथ भाभी भी आई।

भाभी का ध्यान अम्मा के बक्से  पर ही टिका हुआ था।

अन्तिम संस्कार के बाद शाम को बड़ी बहन कमला से बोली  जीजी  सन्दूक मैं मां के गहने सब छोटी ने ही रख लिए क्या? हमें उन में कुछ नहीं मिलेगा?

बीच में सन्दूक रख कर छोटी बहन ने चाबी भाभी को दे दी।

भाभी भाई और बड़ी बहन कमला के बीच उनकी अम्मा से अधिक उनके जेवरों और पैसों पर चर्चा हो रही थी। 

भाई ने कहा – दोनों भी अम्मा की एक एक चीज यादगार के रूप में रख लो।

भैया आज ही सुनार बुला रहे हो जो भी लोग  सुनेंगे वे क्या कहेंगे?

अरे कोई कुछ भी क्यों कहेगा ? किसी के घर डाका डालने जा रहे हैं क्या ? बड़े भाई भाभी एक ही जबान में बोल पड़े।

अब  जेवर कौन रखता है? सोनार को बुलाकर इसे बेच देते हैं और रकम ले लेते हैं।

कोई प्रॉपर्टी खरीद लेंगे।

फिर बहस का विस्तार हुआ।

यही अधिकार तब दिखाते जब अम्मा बीमार थीं। तब तो उनकी सेवा में हिस्सेदारी करने कोई भी नहीं आया।

रहने दो दीदी बेकार की बात बढ़ाने में क्या फायदा?  भाई ने बहन को शान्त करते हुए

कहा।

सुनार बहुत देर तक गहनों को देखता रहा।

सुनार  की आंखों  से दो बूंद आंसू लुढ़क आए…। कमला मां की कमरे में जाकर उनकी तस्वीर देखने लगी। मां सारे संस्कार तूने हम बहनों को ही दिए भाई को क्या कुछ भी नहीं सिखाया?

भाई के अंदर की सारी मानवता मर गई है क्या…?

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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