श्री विजय कुमार
( स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पत्रिका शुभ तारिका के सह-संपादक श्री विजय कुमार जी की एक विचारणीय लघुकथा “सन्देश”। )
☆ स्वतंत्रता दिवस विशेष – लघुकथा – सन्देश ☆
स्वतंत्रता दिवस अर्थात 15 अगस्त को जैसे ही प्रातः उसने अपने मोबाइल पर व्हाट्सएप्प खोला, स्वतंत्रता दिवस की बधाई और शुभकामनाओं के तरह-तरह के संदेश आने आरंभ हो गए। उसने एक-एक कर सभी को देखा और उत्तर देने में लग गया। उसे व्यस्त देखकर पत्नी उठी और बोली, “आप मोबाइल चलाइए, मैं चाय बना कर लाती हूं।”
थोड़ी ही देर में पत्नी चाय लेकर आ गई।
“अरे, बड़ी जल्दी फुर्सत पा ली मुए मोबाइल से”, पत्नी ने मजाक में कहा।
“तुम्हें पता तो है सुलोचना, मैं कितना मोबाइल चलाता हूं। आवश्यक होता है, तभी प्रयोग करता हूं।” दर्शन ने कहा।
“हां, पर आज स्वतंत्रता दिवस है, तो मैंने सोचा खूब सारे बधाई संदेश आए होंगे, तो जवाब देते-देते देर तो लग ही जाएगी।” सुलोचना ने चाय पकड़ाते हुए कहा।
“आए तो बहुत हैं, पर मैंने सभी को उत्तर नहीं दिया।” दर्शन चाय की चुस्की लेता हुआ बोला।
“क्यों? किसको दिया और किसको नहीं दिया?” सुलोचना सोचते हुए बोली।
“जिन्होंने हिंदी में बधाई और शुभकामनाएं दीं, उनको किया है, और जिन्होंने अंग्रेजी में संदेश भेजे हैं, उनको नहीं किया।” दर्शन ने खुलासा किया।
“ऐसा क्यों?” सुलोचना ने पूछा।
“अब तुम ही बताओ सुलोचना कि आज ‘स्वतंत्रता दिवस’ है या ‘इंडिपेंडेंस डे’? जिन अंग्रेजों के हम गुलाम रहे, जिनकी दी गयी यातनाएं और प्रताड़नाएँ सहन कीं, जिनके खिलाफ लड़ कर हमारे लाखों वीरों और नौजवानों ने अपना खून बहाकर स्वतंत्रता प्राप्त की; भारत में रहकर भारतवासी होकर अपने स्वतंत्रता दिवस पर उन्हीं की बोली यानी अंग्रेजी में संदेश भेजकर कौन सी स्वतंत्रता मना रहे हैं लोग”, दर्शन आक्रोश से भर कर बोला, “भारत को इंडिया बना दिया है सभी ने मिलकर। और तो और, त्योहारों पर भी हैप्पी होली, हैप्पी दिवाली, हैप्पी ईद, हैप्पी फलाना, हैप्पी ढिमकाना के संदेश आते रहते हैं। यह बधाई, शुभकामनाएं, मुबारकें या विशुद्ध क्षेत्रीय या मातृभाषा में सन्देश भेजना तो भूलते ही जा रहे हैं लोग। यह हैप्पी कब हमारी संस्कृति से चिपक गया, हमें पता ही नहीं चला। अफसोस की बात यह है कि लोग अपनी संस्कृति, अपनी विरासत को भूल कर आंखें बंद कर यह सब अपना रहे हैं। इस तरह अपने हाथों, अपने ही घर में अपनी ही बेकद्री करवा रहे हैं लोग।”
“बात तो आपकी सोलह आने सही है जी”, सुलोचना ने हामी भरी, “पारंपरिक तौर से अपने देश के तीज- त्यौहार और पर्व मनाने में जो उत्साह, जो आनंद आता है, वह पश्चिमी तौर तरीकों में कहां है। पर आजकल की पीढ़ी यह सब समझे और माने तब ना।”
“कोई माने या ना माने पर समझाना तो हमारा कर्तव्य है। कम से कम मैं तो हर वर्ष इन मूल्यों और उच्च आदर्शों का पालन अवश्य करता रहूंगा। हो सकता है देर-सवेर अपने आप या ठोकर खाकर दूसरों को भी समझ आ ही जाए, और वह इन बातों को मानना शुरू कर दें।” दर्शन ने स्वर में दृढ़ता लाते हुए कहा।
“चलो अब मेरी तरफ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं तो ले लो।” सुलोचना ने कहा तो दर्शन के मुख पर भी मुस्कुराहट छा गई, “तुम्हें भी…।”
© श्री विजय कुमार
सह-संपादक ‘शुभ तारिका’ (मासिक पत्रिका)
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