सुश्री बलजीत कौर ‘अमहर्ष’
(आज प्रस्तुत हैं सुश्री बलजीत कौर ‘अमहर्ष’ जी को दो कवितायें ‘आसमां ‘ और ‘जमीन’ ।)
एक
आसमां
बहती पवन का यह शोर
खींच ले गया मुझे उस ओर
बीते हुए पल, बीते हुए क्षण
बीती हुई यादें,बीते हुए वादे
मानों कल की ही हो बात
वो हँसी-ठट्ठे,वो अठ्खेलियाँ
वो खेल-खिलौने,वो सखी-सहेलियाँ
ना थी आज की चिन्ता,
ना था कल का डर
जीते थे,जीते थे केवल उसी पल
छोटे-छोटे पलों में ही
छुपी थीं बड़ी-बड़ी खुशियाँ
दुःख-दर्द,कलह-क्लेश का
ना था कुछ एहसास
समय ने ली करवट
हुआ दूर वो सपना
ज़िंदगी की हकीकत से
हुआ जब सामना
लगा उड़ता हुआ कोई परिंदा
गिरा हो आकर ज़मीन पर धड़ाम
बनाना था पंखों को सक्षम
बनाने थे अभी कई मुकाम
नापने थे अभी कई नये आसमां !
दो
जमीन
भूले हुए पंछी,
भटके हुए परिंदो,
फिर लौट आओ,
अपने बसेरों की ओर!
नई उड़ान,नये मुक़ाम,
पाना तो है बहुत ख़ूब!
पर रुक कर साँस लेने,
ज़िंदा रहने को,
धरती पर टिके रहना भी है ज़रूरी!
भूले हुए पंछी,
भटके हुए परिंदो,
फिर लौट आओ,
अपने बसेरों की ओर……!
© बलजीत कौर ‘अमहर्ष’
सहायक आचार्या, हिन्दी विभाग, कालिन्दी महाविद्यालय, दिल्ली
शानदार