श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  – कृतिका ☆

 

(“जीवन में अद्भुत होते हैं वे क्षण जब आगे चलनेवाला पिता अपनी संतान के पीछे चलने लगे।”  कल्पना मात्र से ह्रदय गौरवान्वित हो जाता है, जब हम किसी पिता की लेखनी से ऐसे वाक्यों को पढ़ते हैं.  यह अपने आप में एक आत्मसंतुष्टि की भावना को जन्म देती है. ऐसा लगता है जीवन सार्थक हो गया.  भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.  मैंने सुश्री कृतिका (श्री संजय भारद्वाज जी की बिटिया) का ब्लॉग पढ़ा.  अब सुश्री कृतिका ने अपना एक स्थान अर्जित कर लिया है. सुश्री कृतिका के ब्लॉग को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें >>  Glazedshine.

अनायास ही लगा सब कुछ विरासत में नहीं मिला उसने विरासत को आगे बढ़ाने  के लिए कठोर परिश्रम किया है. साथ ही मुझे  पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता स्व. केविन कार्टर के पुरस्कार जीतने के बाद आत्मग्लानि में आत्महत्या की घटना याद आ गई जिसे आप गूगल में सर्च कर सकते हैं. (लिंक को कॉपी राइट के कारण यहाँ नहीं दे सकता).   मैं श्री संजय भरद्वाज जी की भावनाओं को आपसे साझा करने से नहीं रोक सका.)

  – हेमन्त बावनकर

 

जीवन में अद्भुत होते हैं वे क्षण जब आगे चलनेवाला पिता अपनी संतान के पीछे चलने लगे। अनन्य विजय के क्षण होते हैं यह। बिटिया कृतिका ने यह अनन्यता जीवन में  अनेक बार दी है।
कुछ ऐसा ही आज भी हुआ। दो दिन से पशुओं के साथ मनुष्य के व्यवहार को लेकर भीतर एक मंथन चल रहा था। बस कलम उठानी शेष थी कि बिटिया ने अपने ब्लॉग का एक लिंक पढ़ने के लिए भेजा। लेख पढ़ा और रक्त सम्बंध कैसे अदृश्य काम करता है, यह भी जाना। गदगद हो गया उसकी भावनाएँ और उसकी कलम की संभावनाएँ पढ़कर।
यह कृतिका का चौथा ब्लॉग है। पढ़ियेगा और अंकुरित हो रही एक लेखिका को उसके ब्लॉग के कमेंट बॉक्स में आशीर्वाद अवश्य दीजियेगा।
कृतिका के ब्लॉग का लिंक है-  Glazedshine.

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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लतिका

अभिनंदन! बाप से बेटी सवाई…

प्रवीन रघुवंशी

सुंदर रचना से अधिक यह एक हृदयोद्गार ही है। अनायास ही फ़िल्म “हाथी मेरे साथी” के एक गाने की पंक्तियां याद आ जाती हैं:
जब जानवर कोई इंसान को मारे
कहते हैं उसको बहशी सभी सारे
एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है
चुप क्यों है संसार….

वीनु जमुआर

सही कहा अद्भुत है आज का दिन!अनुभूतियों को आज शब्दों में बंधना स्वीकार्य नहीं..एक अहसास जिसे सिर्फ जीया जा सकता है….पिता-पुत्री दोनों के लिए अनंत मंगलकामनाएं…???