डॉ सीमा सूरी
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार , पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता डॉ सीमा सूरी जी का ई-अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत हैं। आपकी उपलब्धियां इस सीमित स्थान में उल्लेखित करना संभव नहीं है। आपने कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है एवं आयोजनों का सफल संचालन भी किया है। आपकी कई रचनाएँ प्रतिष्ठित राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं । आप कई राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों / अलंकारों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता अगर अंधेरा हो…..‘। )
☆ अगर अंधेरा हो….. ☆
चराग़ जम के जलाओ,अगर अंधेरा हो
कहीं न छोड़ कर जाओ,अगर अंधेरा हो
कोई सितारा न हो,तो न सही
खुद ही चांद बन जगमगाओ,अगर अंधेरा हो….
हक़ीक़तें जब परेशान करने लगें
किस्से फिर ख्वाबो के सुनाओ,अगर अंधेरा हो….
जिसके आने से रौशनी जवान होती है
उसे कहीं से भी लाओ,अगर अंधेरा हो….
किताबें बोझ सी लगने लगे पढ़ते पढ़ते
कोई ग़ज़ल फिर गुनगुनाओ,अगर अंधेरा हो…
गमों ने घेर लिया हो जब कभी कस कर
तो फिर खुल के मुस्कुराओ,अगर अंधेरा हो…
भूख जब ज़ोर से लगी हो कभी
तो फिर बाँट कर खाओ,अगर अंधेरा हो…
कभी जब धूप में करके काम जी जो घबराए
किसी को पानी पिलाओ,अगर अंधेरा हो…
तमाम रास्ते अपने आप मिलते जाएंगे
कदमों के निशां पे पैर रखते जाओ ,,अगर अंधेरा हो
अंधेरा कभी अंधेरे से हारता नही
दीप तुम मिल के जलाओ,अगर अंधेरा हो
© डॉ सीमा सूरी
प्लाट नम्बर 70 ,प्रताप नगर जेल रोड ,नई दिल्ली 11 00 64
दूरभाष :84477 41053, 9958331143
बहुत बहुत आभार
सुंदर रचना
वाह-वाह बहुत खूब अतिसुंदर अविस्मरणीय अभिवादन अभिनंदन आदरणीया