श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी विचारणीय कविता – अहल्या-।)
☆ कविता ☆ अहल्या ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
(काव्य संग्रह ‘कुंभ में छूटी औरतें’ में से)
युगों से विजन वन में
धूप में तपती
आँधियों के थपेड़े सहती
अकेलेपन की यंत्रणा भोगती
पाषाण-प्रतिमा
जिससे आकर पीठ रगड़ते थे
जंगल के जीव
राम की पा चरण-रज
अपूर्व-अनिंद्य सुंदरी बन
राम के सम्मुख खड़ी थी
उसकी प्रश्नाकुल आग्नेय दृष्टि को
झेल नहीं पा रहे थे राम
राम बोले –
‘तुम अहल्या हो, स्मरण करो
गौतम ऋषि की पत्नी
गौतम के शाप से शिला में परिवर्तित
मैं राम हूँ, विष्णु का अवतार
मेरी चरण-रज से ही
तुम्हारा उद्धार होना बदा था।’
‘मुझे स्मरण है विष्णु अवतार!
मुझे तुम्हारी चरण-रज पा धन्य होना था
और शीश धरना था तुम्हारे चरणों पर
मुझे गद्गद् होकर तुम्हारा आभारी होना था
इसी की आशा कर रहे थे न तुम राम
परंतु मैं उपकृत नहीं हुई विष्णु अवतार!
मैं धन्य भी नहीं हुई
मैं आहत हुई हूँ।
एक बात पूछूँ विष्णु अवतार!
मेरा अपराध क्या था
कि मैंने युगों तक भोगा
शिला होने का अभिशाप
मैं तो छलित थी
दलित, दमित, बलात्कृत
फिर मैं ही क्यों हुई अभिशप्त?
तुम्हारी चरण-रज में
पाषाण में प्राण फूँकने का बल है
पापियों को दंड देने का बल क्यों नहीं?
इंद्र आज भी क्यों जीवित हैं देवराज बनकर?
अविवेकी गौतम क्यों नहीं हुए पाषाण?’
राम निरुत्तर थे, मौन, निरादृत
अहल्या फिर बोली –
‘मुझे वांछित नहीं तुम्हारी चरण-धूलि
लौटा लो अपना कृपापूर्ण उपकार
तुम्हारा वरदान मुझे जीवन दे
इससे मैं शिला ही भली विष्णु अवतार!’
© हरभगवान चावला
सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा, सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈