श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – “बैंकर्स और व्यंग्य…“।)
अभी अभी # 354 ⇒ बैंकर्स और व्यंग्य… श्री प्रदीप शर्मा
बैंकिंग मतलब
दिमाग़ का दही !
जमा-नामे, ब्याज-बट्टा
नहीं कोई
हँसी ठट्टा।
साहूकार हो
हट्टा कट्टा।।
जो ब से बैंक
लिख मारे
वही इस
दिमाग के दही
की
लस्सी बना डाले।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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