श्री अ. ल. देशपांडे

☆ कविता ☆ अन्यथा प्रलय होना तय है… ☆ श्री अ. ल. देशपांडे ☆

(एक मित्र द्वारा प्रेषित चित्र पर आधारित मनोभावनाएं)

बहुत कुछ कहता है

यह क्षत विक्षत पेड़

 

क्षत विक्षत है पेड़  

पर तन तना है तरू का

 

कराह रहा है तरू

पर दे रहा है फल

 

विपन्नावस्था में भी 

जीवनदायी होकर

खड़े है पेड़.

 

मानव जरा सोच

कर तरू की देखभाल

दे कर अपना पल.

 

जाग मानव जाग

सीख ले प्रकृती से  कुछ

बर्बाद होने से पहले

अन्यथा प्रलय होना

तय है

तुम्हारे जाने से पहले.

 

© श्री अ. ल. देशपांडे

अमरावती

मो. 92257 05884

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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