हिन्दी साहित्य – कविता ☆ एक और एक भी नहीं ☆ सुश्री मनिषा खटाटे
सुश्री मनिषा खटाटे
☆ एक और एक भी नहीं ☆ सुश्री मनिषा खटाटे☆
(मरुस्थल काव्य संग्रह की कविता। इस कविता का अंग्रेजी भावानुवाद जर्मनी की ई पत्रिका (Raven Cage (Poetry and Prose Ezine)#57) में प्रकाशित )
नहीं, कई रास्ते नहीं हैं.
हाँ,बहुत सारे रास्ते हैं.
मै स्वयं को खोजती हूँ अमर्याद में,
निश्चितता खोजती हूँ आभास में,
अमृत खोजती हूँ अर्थ और संदर्भ से,
उद्देश्यों से उद्देश्य तक की यह यात्रा,
सारे रास्ते जाते हैं उस एक तक.
द्वार खोलते हैं मेरी बगिया के,
यही रास्ता है स्वयं से आत्मा तक का.
वहाँ मै भी हूँ और नहीं भी हूँ,
सिर्फ आत्मा की एक संधिछाया !
© सुश्री मनिषा खटाटे
नासिक, महाराष्ट्र (भारत)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈