श्री जयेश वर्मा
(ई-अभिव्यक्ति में सुविख्यात साहित्यकार श्री जयेश कुमार वर्मा जी का हार्दिक स्वागत है। आप बैंक ऑफ़ बरोडा (देना बैंक) से वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। हम अपने पाठकों से आपकी सर्वोत्कृष्ट रचनाएँ समय समय पर साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता एहसास… ।)
☆ कविता ☆ एहसास… ☆
तुम्हारे, वजूद के,
इर्द गिर्द….
अपने एहसासों का,
ताना बाना बुनता हूँ, मैं,
तो लगता है ये,
तुम्हारा, होना, ही,
मायने हैं…मेरी.जिंदगी के..,
सोचा भी नहीँ….
कभी,देखा भी नहीँ,
अपने में ही मशरूफ़ रहा,
एक, सरसरी तौर पर,
जीता रहा,
तुम्हारे…..साथ…साथ,
यूँ, ही गुजरता, वक़्त, गुजर गया,
अब जब हैं, नहीँ…खत्म सी हैं,
मेरी जरूरतें,
जब, वक्त ही वक़्त है मेरे पास,
देखा है तुम्हें, करीब से, इतने दिनों बाद,
समय ने खेंच दी हैं, तुम्हारे चेहरे पर,
कुछ लकीरें, यहां वहां,
छीन नहीं पाया है, अब भी,
आँखों की वो जीवंत चमक,
अधर धरे अब भी मुस्कान,
अब, सोचता हूँ,
कैसे, निभा लिए तुमने,
दायित्व इतने सारे, कि,
घोंसले में, अब हम तुम ही हैं,
एक दूजे को देखते, मुस्काते, समझाते,
कि, एक दूजे बिन अब, नहीं गुजारा,
बना रहे यूँ ही साथ हमारा…
© जयेश वर्मा
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