सुश्री सुलक्षणा मिश्रा
(आज प्रस्तुत है युवा साहित्यकार सुश्री सुलक्षणा मिश्रा जी की एक भावप्रवण कविता “एहसास”। )
☆ कविता – एहसास ☆
इश्क़ है
तो एहसास हैं।
एहसासों की नुमाइश भी
कभी कभी ज़रूरी है।
बयां कर देती ज़ुबान सब कुछ
पर इसकी भी अपनी
कुछ मजबूरी है।
कर देते बयां हम नज़रों से
पर दोनों के दरम्यान
फासले बहुत हैं
बहुत दूरी है।
कभी कभी लगता कि
बोल दूँ सब कुछ
पर कभी कभी लगता कि
खामोशी भी ज़रूरी है।
निकले थे सड़कों पे
तलाशने सुकून,
डर के सन्नाटों से
वापस घर लौटे हैं ।
कभी कभी घर की
चार दिवारें और चौखट ही
सबसे ज़रूरी हैं।
जीत लिया जग सारा
और घर मे रह के जाना
कि दो कमरों की बीच में
मीलों की दूरी है।
© सुश्री सुलक्षणा मिश्रा
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