श्री अरुण कुमार दुबे
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण कुमार दुबे जी, उप पुलिस अधीक्षक पद से मध्य प्रदेश पुलिस विभाग से सेवा निवृत्त हुए हैं । संक्षिप्त परिचय ->> शिक्षा – एम. एस .सी. प्राणी शास्त्र। साहित्य – काव्य विधा गीत, ग़ज़ल, छंद लेखन में विशेष अभिरुचि। आज प्रस्तुत है, आपकी एक भाव प्रवण रचना “करते क़द्रे कुरआँ हम तुम समझते रामायण…“)
करते क़द्रे कुरआँ हम तुम समझते रामायण… ☆ श्री अरुण कुमार दुबे ☆
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सफ़्हा -ए -महब्बत पर हम रकम नहीं होते
दोस्त प्यार के किस्से फिर भी कम नहीं होते
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करते क़द्रे कुरआँ हम तुम समझते रामायण
मस्जिद और मन्दिर में फटते बम नहीं होते
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काश प्यार से इन्सां आये रोज सुलझाते
जिंदगी की जुल्फों में पेचो खम नहीं होते
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तुमने क्या सवाँरा है चश्मे मिह् र से अपनी
वर्ना चाँद से रोशन आज हम नहीं होते
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कर्ब -ए -दहर को अपने तुम न रखते दिल में तो
दास्ताने गम सुनकर चश्मे नम नहीं होते
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नफ़रतें जलाते तुम हम परायापन अपना
है जो आज दुनिया में घोर तम नहीं होते
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आज इस हकीकत को जानते हैं अंधे भी
दिखने वाले सब इंसा मुहतरम नहीं होते
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काश वो अरुण मुझको भूलते नहीं ऐसे
दर्दे दिल नहीं होता रंजो गम नहीं होते
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© श्री अरुण कुमार दुबे
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