डॉ निशा अग्रवाल
☆ ग़ज़ल – तुम्हारे नूर का हर अश्क… ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆
जिधर देखूं उधर जलवा, नज़र तेरा ही आता है
तुम्हारे नूर का हर अश्क, मेरी नजरों को भाता है।
करूं दीदार जब तेरा, मुकद्दर जगमगाता है
तेरे ही दर पे आने को , मेरा मन कसमसाता है।
तेरे रुतवे जवानी के, ये दुनियां जानती सारी
तेरा बस नाम सुनकर ही, धड़कती धड़कनें मेरी।
नशा तेरा चढ़ा ऐसा कि झूमे हर पल ये अंखियां
बुलाना पास तुम इसको, तनहा कटे ना जब रतियां।
हुए मदहोश आंखों से, नतीजा जानता जग है
पिलाई रात भर लेकिन , मेरा रब जानता सब है।
रुकेंगे न कदम पीछे, राह दुर्गम भले ही हो
सजाए साथ सपनों को, पूरा करना जानता है।
हुई न अब तलक रुसवा, दिल मगरुर था लेकिन
तुम्हारी याद में हर पल, मेरा ये दिल तड़पता है।
© डॉ निशा अग्रवाल
(ब्यूरो चीफ ऑफ जयपुर ‘सच की दस्तक’ मासिक पत्रिका)
एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री
जयपुर ,राजस्थान
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Thanks a lot Sir