प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे
☆ गीत – करवा चौथ ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆
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करवा चौथ सुहाना व्रत है, जिसमें जीवन-नूर।
नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।
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करवा चौथ पे भाव समर्पित, व्रत सुहाग की खातिर।
अंतर्मन में पावनता है, पातिव्रत जगजाहिर।।
चंदा देखे से व्रत पूरा, पति-कर जल-दस्तूर।
नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।।
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जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब।
शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।।
गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर।
नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।।
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अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण।
लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।।
सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर।
नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।।
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दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम।
मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।।
जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर।
नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।।
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देव और सब सिद्ध शक्तियाँ, फलित करें जीवन को।
आशीषों का हाथ माथ पर, सावित्री से मन को।।
प्रीत-प्यार परवान चढ़े, मन रहेप्रेम में चूर।
नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।।
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© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661
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