श्री मनीष खरे “शायर अवधी”
(श्री मनीष खरे “शायर अवधी”जी का परिचय उनके ही शब्दों में – “मैंने 300 से अधिक शायरी, गजल, कविताएं लिखीं किन्तु, कभी इस तरह से प्रकाशित करने की कोशिश नहीं की। इस लॉकडाउन में मैंने महसूस किया कि मुझे अपनी इस सोच नुमा चौकोर कमरे से बाहर आना चाहिए और अपनी “अभिव्यक्ति” को अपनी डायरी से बाहर डिजिटल मीडिया में ले जाना चाहिए। मैं ऑटोमोबाइल क्षेत्र के एक प्रसिद्ध संस्थान में मानव संसाधन टीम का सदस्य हूँ। अपने समग्र कैरियर के दौरान मैं ऐसे कई लोगों से मिला हूँ, जिन्होंने मेरे मस्तिष्क में विभिन्न संवेदनाओं को जगाने का प्रयास किया है और उनके साथ उनकी भावनाओं को जिया है। मेरी सभी रचनाएँ उन सभी को समर्पित हैं जिन्होंने अब तक मेरे जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श किया है।” आज प्रस्तुत है आपकी द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने वाले परिवारों की संवेदनाओं की पृष्ठभूमि पर आधारित एक भावप्रवण रचना “गिरा जो कल वो ख़ून था….”।)
☆ कविता – गिरा जो कल वो ख़ून था…. ☆
गिरा जो कल वो ख़ून था
मरा जो था वो जुनून था
कुछ ठहाके लग गए बस
पर मिला नहीं जो वो सुकून था
रात थी जो ढल गयी पर आंधियाँ थमी नहीं
सूखे थे सैलाब आँसुओं के पर गयी नमी नही
आह थी सुलग रही और बाजू थे उलझ रहे
जो था वो झुलस रहा वो शहर बस रंगून था
गिरा जो कल वो ख़ून था….
मरा जो था वो जुनून था….
कट गये हज़ारों ख़्वाहिशों की शान पे
लुट गयीं थीं मांगें बस बेसुरी सी तान पे
याद जो रह गयी और बात सब ये कह गयी
जो टूटे थे वो रिश्ते थे वो वक़्त का क़ानून था
अंगार थे बरक़रार थे और बस्तियां उजड़ रही
जो था वो झुलस रहा वो शहर बस रंगून था
गिरा जो कल वो खून था…
मरा जो था वो जुनून था….
© श्री मनीष खरे “शायर अवधी”
पुणे, महाराष्ट्र
अच्छा प्रयास