आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आज  प्रस्तुत है आचार्य संजीव वर्मा ‘ सलिल ‘ जी की  होली  पर्व पर विशेष रचना  ‘ दोहा-दोहा अलंकार‘।)

☆ दोहा-दोहा अलंकार ☆

 

होली हो ली अब नहीं, होती वैसी मीत

जैसी होली प्रीत ने, खेली कर कर प्रीत

*

हुआ रंग में भंग जब, पड़ा भंग में रंग

होली की हड़बोंग है, हुरियारों के संग

*

आराधा चुप श्याम को, आ राधा कह श्याम

भोर विभोर हुए लिपट, राधा लाल ललाम

*

बजी बाँसुरी बेसुरी, कान्हा दौड़े खीझ

उठा अधर में; अधर पर, अधर धरे रस भीज

*

‘दे  वर’ देवर से कहा, कहा ‘बंधु मत माँग,

तू ही चलकर भरा ले, माँग पूर्ण हो माँग

*

‘चल बे घर’ बेघर कहे, ‘घर सारा संसार’

बना स्वार्थ दे-ले ‘सलिल’, जो वह सच्चा प्यार

*

जितनी पायें; बाँटिए, खुशी आप को आप।

मिटा संतुलन अगर तो, होगा पश्चाताप।।

 

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

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