श्री अमरेंद्र नारायण

(आज प्रस्तुत है सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं  देश की एकता अखण्डता के लिए समर्पित व्यक्तित्व श्री अमरेंद्र नारायण जी की एक भावप्रवण कविता पगडंडी की पीड़ा)

☆ पगडंडी की पीड़ा  

 कभी घोड़ों की निर्मम टापें

कभी तपती धरती का क्रंदन

कभी धूल उड़ाती वायु की

झुलसाती , चुभती हुई तपन

 

कभी दंभ भरे कर्कश वाहन

कभी पशुओं का स्वच्छंद गमन

कभी लाठी की फटकार, कभी

जूतों का चुभता रूखापन

 

कभी फुसफुस,चोरी की बातें

तो सिक्कों की झनकार कभी

किसी गहन निशा में आती है

करुणा से भरी चीत्कार कभी

 

पगडंडी सहती जायेगी

कब तक यह निर्मम आवर्तन?

कोई सरस हृदय दे पायेगा

उसके उर को क्या स्निग्ध छुअन ?

 

हां सच है सुनने को मिलता

समवेत स्वरों में गीत मधुर

कभी घर को लौट रहे किसी का

आतुरता से प्रेरित कोई सुर

 

ना जाने कितने पांवों का

आघात सहन करना पड़ता

वे अपनी मंजिल को पा लें

बस यही ध्येय उर में रहता!

 

जल्दी जाने की धुन सबको

यह सबकी उपेक्षा सहती है

कोई प्यार से मुड़ कर देख तो ले

इतनी ही अपेक्षा रखती है!

 

किसको उसकी परवाह भला?

पगडंडी क्या कभी रोती है?

वह टाप,चाप,संताप,तपन

अपनी छाती पर ढोती है!

 

कोई कीचड़,फिसलन दे जाता

गंदगी,प्रदूषण फैलाता

यह सब सहती है पगडंडी

जाने वाले का क्या जाता?

 

संवेदनशील अगर हों हम

खुश हो बांहें फैलायेगी

सदियों से सहती आई है

आगे भी सहती जायेगी!

 

क्या कोई भावुक हृदय कभी

हौले से पांव बढ़ायेगा?

सुन्दर मुस्काते फूलों की

क्यारी क्या कभी लगायेगा?

 

©  श्री अमरेन्द्र नारायण 

२७ अगस्त २०२०

जबलपुर

मो ९४२५८०७२००

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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