डॉ निशा अग्रवाल
☆ कविता – प्रकृति जीवनदायिनी है ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆
रूढ़वादिता की दहलीज पर खड़े होकर 21वीं सदी के सपने देख रहे है हम।
आधुनिकता के रंग में रंगने को तैयार हो रहे हैं हम।।
काट रहे हैं वन जंगल सब ,
बहक रहे है हम।
ऐसा सतत करते रहे तो,
एक दिन मिट जाएंगे हम।।
हिमगिरि से ढके पहाड़ों को काट रहे हैं हम।
बिना भविष्य की सोच विचार कर,
चौड़े चौड़े मार्ग बना रहे है हम।।
पानी के स्रोतों को बंद कर,
स्वयं विनाश को दावत दे रहे है हम।
सूखा है धरती का आँचल,
आकर्षण हरियाली मां का सुखा रहे हैं हम।।
पानी बिक रहा लीटर में, बोतल में होकर बंद।
पानी बचाओ के नारे अब लगा रहे है हम।।
वन उपवन सब काट काट कर,
बहुमंजिला इमारत बना रहे है हम।
आधुनिकता की अंधी दौड़ में, दौड़ रहे हैं हम।।
पक्षियों के घरौंदे घोंसले,
खत्म कर रहे है हम।
वृक्षों से मिलती मुफ्त ऑक्सीजन
को कम कर रहे है हम।।
खरीद रहे नौनिहाल जिंदगी,
बंद सिलेंडर में अब हम।
एक तरफ हरियाली बचाओ के
नारे लगा रहे है हम।।
आधुनिकता की होड़ में हमने
बहुत कुछ बर्बाद किया।
अपना जीवन अपने हाथों से ही स्वाह किया।।
ए सी, पंखा, फ्रीज, ओवन और मोबाइल का प्रयोग किया।
पर्यावरण की सुरक्षा ना करके,
सिर्फ अपना स्वार्थ ही सिद्ध किया।।
प्रकृति ने जब जब कुछ कहना चाहा।
अनसुनी कर मनमानी से हमने जीना चाहा।।
कितना प्यार लुटाती है एक माँ की तरह प्रकृति।
बिन मांगे ही बहुत कुछ दे जाती है प्रकृति।।
दिन की रोशनी, रात की चाँदनी देती है प्रकृति।
धरती को हरा भरा करती है प्रकृति।।
मत काटो, मत काटो हमको कहती ये,
रो रो कर अश्रु बहाती ये।
निर्जीव नही मैं, प्राण बसे मुझमें,
बिलख रही है हर पल ये।
पलता जीवन, मिलता आश्रय,
शुद्ध हवा कर देती ये।
सारी विपदा को हर लेती,
हर पल कुछ ये देती रहती, बदले में कुछ ना लेती ये।
पेड़ पौधें और पर्ण पुष्प सब आभूषण है प्रकृति के,
दवा, पानी, फल, भोजन, वायु उपहार बने सब प्रकृति के।
मानव की उद्दंडता ने प्रकृति को बहुत है उकसाया,
विकास की दौड़ में मानव ने प्रकृति को बहुत है तड़फाया।
उठो जागो नर नारी तुम, प्रकृति से ना रुसवाई करो,
हरियाली चादर फैलाकर, प्रकृति को खुशहाल करो।
© डॉ निशा अग्रवाल
जयपुर, राजस्थान
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Thanks alot Sir
वाह बहुत बेहतरीन लेखनी
उत्कृष्ट सारगर्भित रचना बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीया श्री