श्री हरभगवान चावला
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।)
आज प्रस्तुत है आपकी लॉकडाउन के दौर में पलायन पर आधारित विचारणीय कविताएँ।)
☆ पलायन: कुछ कविताएँ ☆ श्री हरभगवान चावला ☆
दो साल पहले अचानक घोषित लॉकडाउन के बाद जिस तरीक़े से मज़दूरों का पलायन हुआ, वह दिल दहला देने वाला था। कौन मनुष्य होगा जो इस हौलनाक पलायन को देखकर विचलित नहीं हुआ होगा। उसी दौरान लिखी गईं ये कविताएँ प्रस्तुत हैं –
पलायन: कुछ कविताएँ
1.
वे किसी जीवाणु-विषाणु से नहीं डरते
वे डरते हैं उन्हें विषाणु मानने वाले लोगों से
वे डरते हैं भूख से
वे डरते हैं परदेस में लावारिस मौत मरने से
वे डरते हैं दयालु दबंग मालिकों से।
2.
वे किसी हिल स्टेशन पर नहीं जा रहे
न मौज मनाने समंदर किनारे
सब कुछ खोकर भागने का मतलब
छुट्टी मनाना नहीं होता।
3.
अभी पाँच मील का रास्ता तय हुआ है
कि गर्भ के बच्चे को सँभालती औरत
दर्द से कराहती सड़क पर लेट गई है
पाँच सौ मील का सफ़र अभी बाक़ी है।
4.
एक भूखे मुसाफ़िर ने
बेटी के गोरे चेहरे पर
तवे की कालिख मल दी है
कि बची रहे गिद्धों की नज़र से
वैसे वह जानता है
कि गिद्ध रंग नहीं, मांस देखते हैं।
5.
एक भूखा आदमी
परिवार के लिए रोटी नहीं
अपनी किशोरी बेटी के
फट चुके कुरते के लिए
सेफ्टी पिन माँग रहा है।
6.
पलायनकर्ता की तलाशी के लिए
उसके सर से पोटली उतारी गई
पोटली में से एक साड़ी
और दो दर्जन चूड़ियाँ निकलीं।
7.
पलायन कर रहे लोग चाहते हैं
कि भूखे-प्यासे, टूटे-फूटे
लुटे-पिटे, जैसे भी पहुँचें
बस पहुँच जाएँ अपने घर
मौत कहीं रास्ते में न दबोच ले।
© हरभगवान चावला
दिल को छू लेने वाली रचनाएं, बधाई