डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

(डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ जी  बेंगलुरु के नोबल कॉलेज में प्राध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं एवं  साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में मन्नू भंडारी के कथा साहित्य में मनोवैज्ञानिकता, दो कविता संग्रह, पाँच कहानी संग्रह,  एक उपन्यास (फिर एक नयी सुबह) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इसके अतिरिक्त आपकी एक लम्बी कविता को इंडियन बुक ऑफ़ रिकार्ड्स 2020 में स्थान दिया गया है। आपका उपन्यास “औरत तेरी यही कहानी” शीघ्र प्रकाश्य। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता बिदाई… ।)  

☆ कविता ☆ बिदाई… ☆ डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’ ☆

सूरज, चांद और बादल,

अपना-अपना करते काम,

एक लगाव है उनसे.

समुंदर की लहरों में भी,

कई बार उफ़ान आता-जाता है.

फ़िर भी किसी को बुरा नहीं लगता.

बुरा तो मात्र औ’ मात्र!!!

अपनों के बिछुडने का लगता,

बंद आखों में सपने सँजोए,

निकल पड़े कँटीली राह पर,

बचपन की यादें बरबस ही आती,

भुलाए नहीं भूलती ये यादें,

वह नटखटपन तेरा,

माँ के साथ लड़ना,

यूँ झूठ बोलना किसी को भी,

नहीं होता इल्म जिसका,

पकड़े जाने पर मुस्काना,

लिखने पर आलस्य करना,

हर बात के लिए माँ से डाँट खाना,

कभी प्यार से बतियाना,

कभी माँ के लिए तोहफा लाना,

बिदाई सिर्फ लड़कियों की नहीं,

होती है बिदाई हर किसी की,

जो घर से बाहर जाता है,

चहारदीवारी में सिमटा हुआ,

आज निकला चांद का टुकडा,

चांदनी फैलाने को समाज में,

पहले था समय प्राचीन…

जब घर से सिर्फ औ’ सिर्फ,

होती लड़की की बिदाई,

आज तो निकल पड़े लड़के भी,

सपने को करने साकार,

घर से दूर जाकर अनजान जगह,

अनजान लोगों के बीच…

बनाने पहचान चल पड़े राही,

रुखसत में याद आती बातें,

यादों का जहाँ बना फिरदौस,

वादियों में नज़र आता चेहरा,

कारवाँ यूँ ही चलता रहेगा,

बिदाई सही अर्थों में हुई आज,

बस भर आती आँखे…

ताउम्र संजोएँगे सपने,

याद आएगी वो हर रात,

गुज़रे हुए पल-वो लम्हा,

जो बिताया है साथ में,

फिर से हुई आँखे नम,

रोके नहीं रूकते आँसू,

याद मात्र याद बनकर रह गई,

नादान पुत्तर बनना काबिल इंसान,

ज्ञान का दीपक बनकर लौटना,

इंतज़ार रहेगा इन आँखो को,

एक खिलता हुआ गुलाब देखने की,

यही आशीर्वाद है, यही आशीर्वाद है…

© डॉ. अनिता एस. कर्पूर ’अनु’

संपर्क: प्राध्यापिका, लेखिका व कवयित्री, हिन्दी विभाग, नोबल कॉलेज, जेपी नगर, बेंगलूरू।

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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