श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “
(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। आज प्रस्तुत है श्रीमती हेमलता मिश्रा जी की स्त्री शक्ति को सन्देश देती एक विचारोत्तेजक एवं भावप्रवण कविता राम आओ फिर एक बार)
☆ राम आओ फिर एक बार ☆
राम तुम एक युग हो
राम तुम स्वयं एक युग पुरुष हो।।
एक समाज एक व्यवस्था एक विचारधारा एक मर्यादा हो
माना कि तुम हर युग में आओगे युग पुरुष बनकर।।
पर सोचो,
क्या अपनी चरणधूलि की सार्थकता
जनमत के प्रति अपनी महानता
इन को मनवाने के लिए
हर युग में युग नारी सीता अहिल्या और शबरी भी पाओगे?
नहीं राम जान लो नहीं पाओगे अहिल्या अब किसी भी युग में तुम
नकारी है अहिल्या ने तुम्हारी चरणधूलि
कि–हर युग में छलना इंद्र की
और शाप गौतम का अब नहीं स्वीकार्य उसे।।
राम! रोक लो अपनी चरणधूलि
जो तुम्हे भगवान ठहराती है और – –
पहचानो अहिल्या के कुचले स्वाभिमान को
निर्दोष अभिशप्ता की व्यथा को।।
हाँ सुनो राम – – तुम्हें भी देनी होगी अग्नि परीक्षा अब सीता के लिए
क्योंकि – –
तुम्हारे युग धर्मों ने अब तक बाँधा है परिभाषाओं
और लक्ष्मण रेखाओं में सिर्फ सीताओं को ही।।
अब खरा उतरना होगा तुम्हें भी उन पर
जिन्हें अर्थ दिए है सीता और अहिल्या ने।।
राम सत्य है कि मानवी बनाकर भी
नहीं बदला है अहिल्या के लिए तुम्हारा समाज तुम्हारे मूल्य
शबरी के जूठे बेर तुमने खाकर भी
नहीं बदली है समाज की व्यवस्था।।
अग्नि परीक्षा लेकर भी नहीं रुका है सीता का अपमान
धरती के गर्भ में समाने तक।।
हे राम विनती है तुमसे कि तुम आओ
पर यह विश्वास लेकर कि
“तुम्हें बदलना है समाज तुम्हें बदलनी है व्यवस्था
तुम्हें उभारना है निष्पक्ष जनमत
तुम्हें बनाना है नये मूल्य
तुम्हें लाना है एक नया युग
सत्याधारित सच्चा नया युग – – ना कि पुराने युगों का नया संस्करण
तुम्हें लाना है सचमुच नया युग
आओ राम फिर एक बार युग पुरुष बन कर
© हेमलता मिश्र “मानवी ”
नागपुर, महाराष्ट्र
प्रणाम दी ?????अद्भुत विचार!!एक ऐसा आग्रह है,आपकी इस रचना में, जो केवल आपके जैसी साहसी व स्त्री जाति का,स्वयं का सम्मान करना जानने वाली स्त्री ही कर सकती है।हृदयस्पर्शी रचना।