डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं शीत ऋतू पर आधारित आपके अप्रतिम दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #39 – दोहे
स्वेटर का मैं क्या करूं, धूप प्रिया धनवान ।
यादों की है अरगनी, मन का बना मचान।।
बौने जैसे दिन हुए, आदमकद -सी रात ।
दिन सूरज के खिल रहे, आंखों में जल जात ।।
शरद शिशिर का आगमन, मनसिज का अवदान।
जब पूजा का विस्मरण, खजुराहो का ध्यान ।।
शीत कंपाए अंग को, मन में बसे अनंग।
दुविधा मिटती द्वैत की, सज्जित रंग बिरंग।।
कथरी में छुपता नहीं, दुर्बल पीत शरीर ।
शीत चलाता जा रहा, दोबारा शमशीर ।।
औ रे ऋतु के देवता, आकर तनिक निहार।
उघडा धन कैसे सहे, तेरे सुमन प्रहार।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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