डॉ राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे आज भी हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते हैं। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणा स्त्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपके अप्रतिम कालजयी दोहे।)
लेखनी सुमित्र की #49 – दोहे
क्षणभर का सानिध्य ही, तन में भरे उजास।
दर्शन की यमुना हरे, युगों युगों की प्यास।।
हृदय और मरुदेश में, अंतर नहीं विशेष।
हरित भूमियों के तले, पतझड़ के अवशेष ।।
तन-मन में शैथिल्य है, गहरा है अवसाद ।
एक सहारा शेष है, अपने प्रिय की याद।।
यह सांसों की बांसुरी ,कब लोगे तुम हाथ ।
प्रश्नाकुल साधे कहें, कब तक रहें, अनाथ।।
मरुथल जैसी जिंदगी, अंतहीन भटकाव।
हरित भूमियों से मिले, जीवन के प्रस्ताव।।
© डॉ राजकुमार “सुमित्र”
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
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